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संविधान के मूल ढांचे का सिद्घांत दिलाने वाले संत केशवानंद भारती का निधन, पीएम मोदी समेत दिग्गजों ने जताया शोक

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नई दिल्ली , एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट से संविधान के मूल ढांचे का सिद्घांत दिलाने वाले केरल निवासी संत केशवानंद भारती श्रीपदगवरू का इदानीर मठ में तड़के करीब तीन बजकर 30 मिनट पर निधन हो गया। 79 वर्षीय भारती उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत केशवानंद भारती के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, हम पूज्य केशवानंद भारती जी को उनकी सामुदायिक सेवा और शोषितों को सशक्त करने के उनके प्रयासों के लिए हमेशा याद रखेंगे। उनका देश के संविधान और समृद्घ संस्ति से गहरा लगाव था। वह पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे। ओम शांति।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि एक महान दार्शनिक और द्रष्टा के रूप में स्वामी केशवानंद भारती जी का निधन राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति है। हमारी परंपरा और लोकाचार की रक्षा के लिए उनका योगदान समृद्घ और अविस्मरणीय है। उनको हमेशा भारतीय संस्ति के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा। उनके अनुयायियों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना।
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने संत केशवानंद भारती के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें दार्शनिक, शास्त्रीय गायक और सांस्तिक प्रतीक का एक दुर्लभ मेल बताया। उन्होंने कहा कि संत को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है जिसमें व्यवस्था दी गई है कि संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता है। उप राष्घ्ट्रपति ने कहा कि उनके निधन से हमने एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता खो दिया है। उनका जीवन भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहेगा।
विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि अद्वैत के प्रस्तावक और आध्यात्मिक नेता पूज्य केशवानंद भारती जी के निधन से गहरा दुख हुआ। वह मौलिक अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में याचिकाकर्ता थे जिन्होंने भारतीय संविधान के सिद्घांतों पर जोर दिया था।
चार दशक पहले भारती ने केरल भूमि सुधार कानून को चुनौती दी थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे का सिद्घांत दिया था। उक्त फैसला सर्वोच्च अदालत की अब तक सबसे बड़ी पीठ ने दिया था जिसमें 13 न्यायमूर्ति शामिल थे। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के चर्चित मामले पर कुल 68 दिन तक सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट यह अब तक की सबसे अधिक समय तक किसी मुकदमे पर चली सुनवाई थी।
मामले की सुनवाई 31 अक्टूबर 1972 को शुरू हुई थी जो 23 मार्च 1973 को जाकर पूरी हुई। इस केस की सबसे अधिक चर्चा भारतीय संवैधानिक कानून में होती रही है। कानून के छात्र इस मामले को पढ़ते हैं। इस केस के महत्घ्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उक्घ्त फैसले की वजह से ही संविधान में संशोधन तो किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में बदलाव नहीं हो सकता है।

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