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अफ्रीकी देशों को श्रीलंका और पाकिस्तान बनाने पर अमादा है चीन! ऐसे चल रही ड्रैगन की ‘बंदरगाह पॉलिटिक्स’

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नई दिल्ली, एजेंसी। दुनिया के पांच प्रमुख देशों के बड़े आर्थिक समूह ब्रिक्स की बैठक मंगलवार से जोहान्सबर्ग में शुरू हो गई है। इस बैठक में सबसे ज्यादा चर्चा चीन की ओर से अफ्रीका के उन देशों में की जाने वाली आर्थिक घुसपैठ और बंदरगाह पॉलिटिक्स को लेकर हो रही है, जिसके चलते चीन ने अपना आधिपत्य इन मुल्कों में जमाने की कोशिश शुरू की। विदेशी मामलों और चीन पर करीब से नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि बीते कुछ सालों में चीन ने ‘बंदरगाह पॉलिटिक्स’ के माध्यम से दुनिया के अलग-अलग मुल्कों को न सिर्फ बर्बादी की राह पर ढकेला है, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था पर भी मजबूत कब्जेदारी जमा ली है। चीन अपनी इसी चाल से दुनिया के ज्यादातर गरीब मुल्कों को फंसा कर उनको ज्यादा से ज्यादा कर्ज देता है ताकि वह उबरने की दशाओं में चीन पर निर्भर होते चले जाएं।
विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि चीन गरीब अफ्रीकी देशों में अपने डेवलपमेंटल और इंफ्रास्ट्रक्चरल रोड मैप के माध्यम से अपना बड़ा नेटवर्क स्थापित कर रहा है। रक्षा मामलों से जुड़े विशेषज्ञ कर्नल अरुण बनर्जी बताते हैं कि चीन ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के मॉडल में सबसे बड़ा मॉडल बंदरगाह पॉलिटिक्स को शामिल किया है। इस माध्यम से वह उन गरीब देशों में ट्रांसपोर्टेशन का बड़ा मॉडल पेश करता है और उसके माध्यम से इन देशों में न सिर्फ बड़ा निवेश करता है, बल्कि सीधे बड़ा व्यापारिक समझौता भी करता है। वह कहते हैं कि 2017 में चीन ने ब्राजील के उत्तरी हिस्से में एक बड़े बंदरगाह को बनाने का काम शुरू किया। इस बंदरगाह के माध्यम से चीन ने खुद को तो ब्राजील के साथ जोड़ लिया, लेकिन ब्राजील को अमेरिकी देशों के साथ बड़े विवाद में फंसा दिया।
विदेशी मामलों और रक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि चीन जिन देशों में बड़ा निवेश करता है वह वहां की अर्थव्यवस्था पर अपनी मजबूत पकड़ भी बनाने के सभी हथकंडे अपनाता है। एफ्रो एशियन डेवलपमेंट एंड एलायंसेज के डायरेक्टर मधुरेश मिन्हास कहते हैं कि श्रीलंका के हंबनटोटा में जिस तरीके से चीन ने अपना निवेश किया और उसके बाद इतना अधिक श्रीलंका को कर्ज दिया कि वह पूरी तरीके से बर्बाद हो गया। इसी तरह चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर भारी निवेश करना शुरू किया। नतीजा सबके सामने है कि पाकिस्तान इस वक्त किस दौर से गुजर रहा है। वह कहते हैं कि अगर चीन की इसी रणनीति को ढंग से समझा जाए तो स्पष्ट होता है कि वह न सिर्फ बंदरगाहों के माध्यम से गरीब मुल्कों को बड़े व्यापारिक समझौते के तहत व्यापारिक सपने दिखाता है। फिर वह बाद में ऐसे देशों को इतना कर्जा देता है कि बाद में वह मुल्क बर्बादी की राह पर आगे बढ़ जाते हैं।
चीन के आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले विश्लेषक बताते हैं कि बीते 10 सालों में चीन ने सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में ही 134 अरब डॉलर का निवेश किया है। इस निवेश के माध्यम से चीन ने वहां की खदानों समेत इंफ्रास्ट्रक्चर, कृषि और रिन्यूअल एनर्जी में सहयोग का करार किया है। चीन की अर्थव्यवस्था और विदेशों में किए जाने वाले निवेश पर शोध करने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के रिसर्च अनुराग शुक्ला बताते हैं कि 2012 से पहले भी चीन ने तकरीबन 800 मिलियन डॉलर के निवेश के साथ अफ्रीका के तकरीबन 38 बड़े प्रोजेक्ट में पैसा लगाया था। वहां के बड़े इंडस्ट्रियल कॉरिडोर समेत हाईवेज और ब्रिज निर्माण में काम शुरू किया। वह कहते हैं कि चीन ने 2018 में ब्राजीलियाई तेल कंपनी पेट्रोवॉस के साथ चीन की सिल्करोड फंड कंपनी के साथ बड़ा करार किया था। अनुराग कहते हैं कि इस निवेश के साथ चीन ने ब्राजील में गैस पाइपलाइन डालने का काम शुरू किया और उसके साथ बड़ा कर्ज भी देना शुरू कर दिया।
खुफिया एजेंसी से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि किसी दूसरे और कमजोर देश में पांव जमाने के लिए चीन की यही सबसे बड़ी रणनीति है। वो कहते हैं कि चीन की कोशिश तीन तरह से देशों को अपने जाल में फंसाने की होती है। इसमें सबसे पहले चीन उन देशों का चयन करता है जो आर्थिक रूप से सबसे कमजोर है। फिर चीन उन देशों में उनकी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अपनी सरकार के माध्यम से मदद का हाथ आगे बढ़ाता है। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण चाल में वह उनको न सिर्फ उनकी जीडीपी से ज्यादा का अलग-अलग तरह का कर्ज देता है। बल्कि इसी के साथ वह उन देशों की अर्थव्यवस्था पर अपना दखल देकर एक तरह से इन मुल्कों को अपने मन मुताबिक चलने पर राजी करने की साजिश रचता है।
खुफिया एजेंसी से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि बीते कुछ सालों में उनका विश्लेषण यही कहता है कि चीन ने सबसे ज्यादा उन देशों में निवेश किया जो कि समुद्री क्षेत्रों से जुड़े रहे या फिर समुद्री इलाकों के बिल्कुल पास रहे। वह कहते हैं कि फिर चाहे श्रीलंका हो पाकिस्तान हो या फिर चीन के पूर्व से लेकर दक्षिण पूर्व के देशों समेत अफ्रीका के देश शामिल हों। इन सभी देशों में चीन की नजर इसलिए ज्यादा होती है क्योंकि वह इन देशों में बंदरगाहों के निर्माण के माध्यम से अपने देश की व्यापारिक गतिविधियों को सीधे पहुंचा जा सके। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एपी सिंह कहते हैं कि ट्रांसपोर्टेशन के माध्यम से ही चीन अपने बड़े व्यापारिक नेटवर्क को स्थापित करने के साथ साथ अपनी खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ अन्य सरकारी संस्थानों के लोगों को उन देशों में तैनात करता है। इससे आसपास के मुल्कों में चीन को खुफिया इनपुट भी मिलते रहते हैं।

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