क्यों चीन, भारतीय सेना को लद्दाख में 2000 वर्ग किमी क्षेत्र में जाने से रोक रहा है?: जयराम रमेश
नई दिल्ली, एजेंसी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव एवं संसद सदस्य जयराम रमेश ने लद्दाख में भारत और चीन सीमा पर तनाव को लेकर 13 जनवरी को एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे 11 जनवरी को अपनी वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, हमारा प्रयास 2020 के बीच से पहले जैसी स्थिति पर वापस जाने के लिए बातचीत (चीन के साथ) जारी रखने का है। बतौर जयराम, उनकी यह टिप्पणी याद दिलाती है कि घुसपैठ के लगभग चार साल बाद भी चीन के सैनिकों को लद्दाख में 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक जाने से रोक रहे हैं। उन्होंने कहा, राजौरी पुंछ में आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी देखी गई है। सीमा पार से राजौरी पुंछ सेक्टर में आतंकवादी ढांचे को समर्थन जारी है।
जयराम रमेश ने कहा, इससे साफ होता है कि सीमा पार से आतंकवाद का खतरा बरकरार है। नोटबंदी या जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर आतंकवाद को खत्म करने का दावा, पूरी तरह से गलत साबित हुआ है। पांच अगस्त 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर में हुए आतंकवादी हमलों में 160 से अधिक जवान मारे गए हैं। हमारे जवानों पर हाल ही में 12 जनवरी को पुंछ में हमला हुआ है। सौभाग्य की बात यह है कि इस बार कोई गंभीर नुकसान नहीं हुआ है।
जयराम रमेश के मुताबिक, प्रधानमंत्री द्वारा 19 जून 2020 को चीन को दी गई क्लीन चिट, जब उन्होंने कहा था कि न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है, हमारे शहीद जवानों का अपमान था। उस क्लीन चिट की वजह से ही 18 दौर की वार्ता के बावजूद 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण जारी है। लेह के पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रस्तुत एक पेपर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत अब 65 पेट्रोलिंग प्वाइंट्स में से 26 तक नहीं जा सकता है। ये वे पेट्रोलिंग प्वाइंट्स हैं, जहां भारतीय सेना 2020 से पहले तक बिना किसी रोक टोक के पेट्रोलिंग करती थी। आज रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देपसांग और डेमचोक जैसे क्षेत्र भी भारतीय सैनिकों की पहुंच से दूर हैं।
जयराम रमेश ने कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति मोदी सरकार का संवेदनहीन रवैया, जिसे वह केवल चुनावी लाभ के चश्मे से देखती है, पूर्व सेना प्रमुख एम नवरणे की पुस्तक में हुए खुलासे में भी सामने आया था। इसमें उन्होंने बताया है कि अग्निपथ योजना से सेना ‘आश्चर्यचकित’ थी। नौसेना और वायु सेना के लिए यह एक झटके की तरह था। इन उदाहरणों से साबित होता है कि प्रधानमंत्री के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा भी देश की कीमत पर व्यक्तिगत प्रचार प्रसार और खुद के महिमामंडन का एक साधन बन कर रह गई है।