उत्तराखंड

पेयजल एजेंसियों को उनके अधिकार दिलाने को कर्मचारी लामबंद

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देहरादून। पेयजल एजेंसियों से ही पेयजल, सीवरेज जैसे तकनीकी काम कराने और शहरी विकास की एजेंसी से काम वापस लेने की मांग को लेकर कर्मचारियों ने मोर्चा खोल दिया है। जल निगम जल संस्थान संयुक्त मोर्चा ने शासन में बैठे अफसरों पर पेयजल एजेंसियों को कमजोर करने का आरोप लगाया। सीवरेज और पेयजल जैसे तकनीकी काम गैर पेयजल एजेंसियों के इंजीनियरों से कराने को राज्य का नुकसान बताया। संयुक्त मोर्चा के संयोजक रमेश बिंजौला और विजय खाली ने एक बयान जारी कर रहा कि सरकार को 20 फरवरी तक का समय दिया गया है। यदि इस बीच पेयजल, सीवरेज के काम पेयजल एजेंसियों को वापस नहीं किए जाते हैं। पेयजल को राजकीय विभाग बनाने की दिशा में कोई काम नहीं होता है, तो 21 फरवरी को अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर दिया जाएगा। कहा कि राज्य के 19 शहरों में अरबों के सीवरेज, पेयजल के काम उन इंजीनियरों से कराए जा रहे हैं, जिन्होंने कभी ये काम किए ही नहीं है।कहा कि जिन इंजीनियरों का इस्तेमाल बिजली उत्पादन बढ़ाने को किया जाना था, उन्हें पेयजल, सीवरेज के कामों में लगा रखा है। यही वजह है, जो एक के बाद एक योजनाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। अरबों का बजट खर्च कर भी लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। गलत तरीके से ट्यूबवेल बोर कराए जा रहे हैं, जो बाद में फेल साबित हो रहे हैं। ओवरहेड टैंक लीक कर रहे हैं। बजट बर्बाद करने को करोड़ों के सफेद हाथी के रूप में आरओ प्लांट खड़े कर दिए गए हैं। ऐसे कामों से सिर्फ राज्य का नुकसान हो रहा है। अरबों का लोन देकर यदि इस तरह के काम किए जाएंगे, तो इसका नुकसान राज्य की आने वाली पीढ़ी को भुगतना होगा। यदि जल्द फैसला नहीं होता, तो कर्मचारियों के सामने सिवाय हड़ताल के कोई दूसरा विकल्प नहीं बचेगा।
देहरादून में ही आ रही सबसे अधिक शिकायतेंरू संयुक्त मोर्चा पदाधिकारियों ने कहा कि एडीबी के बजट से होने वाले कामों में सबसे अधिक शिकायतें देहरादून में ही आ रही हैं। जोगीवाला रिंग रोड में कई गलियों में बिना लेवल के सीवर लाइन बिछा दी गई है। यहां अब लोगों के घर सीवर लाइन से कनेक्ट ही नहीं हो पा रहे हैं। बंजारावाला में लेवल न मिलने का हवाला देते हुए कई गलियों में सीवर लाइन बिछाने का काम छोड़ दिया गया है। सीवर लाइन खुदाई के बाद तैयार हुई सड़कों की गुणवत्ता बेहद घटिया है। सड़क बनने के चंद दिनों बाद ही सड़कें फिर जर्जर हाल में पहुंच गई हैं।

 

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