डेंगू की दस्तक और सरकारी प्रबंध
मानसून की शुरुआत के साथी प्रदेश भर में अब डेंगू का असर बढ़ाने की संभावना भी नजर आने लगी है। प्रत्येक मानसून के दौरान खासतौर से मैदानी क्षेत्रों में डेंगू अपना असर दिखाता है लेकिन स्वास्थ्य महकमा इस दिशा में मात्र चंद औपचारिकताएं निभाने के और कुछ नहीं करता। इस बार भी डेंगू की संभावनाओं को देखते हुए जनपद स्तर पर डेंगू से बचाव और रोकथाम को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है लेकिन धरातल पर डेंगू उन्मूलन का कोई कार्य फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। डेंगू के असर से प्रदेश के लोग अनभिज्ञ नहीं है और इस बात से भी नहीं कि डेंगू का प्रकोप बढ़ने पर किस प्रकार से पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं ताश के पत्तों की तरह रह जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में डेंगू के उपचार को लेकर सरकारी व्यवस्थाएं कसौटियों पर खड़ी नहीं उतरी हैं। खास तौर से डेंगू की जांच और उसकी रिपोर्ट ने मरीजों को काफी रुलाया है जबकि डेंगू के इलाज में निजी अस्पतालों ने जमकर चांदी काटी। प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा कहीं ना कहीं संक्रमित एवं फैलने वाली बीमारियों के बाद पैदा होने वाली स्थिति को नियंत्रण करने में हांफता हुआ नजर आता है। पिछले वर्षों के अनुभव बताते हैं कि डेंगू के लिए गए रक्त के नमूने की जांच लंबी प्रतीक्षा करती है तो कई लोगों की रिपोर्ट तब आई जब मरीज दुनिया छोड़कर चले गए। डेंगू में सरकारी व्यवस्थाओं के तहत प्लेटलेट्स की उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या है और इसके लिए मरीज को अक्सर निजी रक्त बैंक एवं लूट खसोट करने वाले निजी अस्पतालों का शिकार बनते हुए देखा गया है। डेंगू का असर मौसम के साथ प्रभावित होता चला जाएगा लेकिन इससे पूर्व यदि उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग अपनी तैयारी को लेकर सजग नहीं हुआ तो फिर जो परिस्थितियों पैदा होगी वह मुश्किल हो जाएंगी। हालांकि प्रारंभिक तौर पर जनपदों के अस्पतालों में डेंगू की संभावनाओं को देखते हुए बेड बढ़ाने की तैयारी की जा रही है तो वही सबसे महत्वपूर्ण होगा कि डेंगू की जांच को लेकर तीव्रता से कार्य किया जाए ताकि मरीज को तत्काल रिपोर्ट उपलब्ध हो सके। रक्त बैंक में रक्त एवं प्लेटलेट्स की व्यवस्था को चाक चौबंद रखने के लिए बुनियादी तौर पर मजबूत बनान होगा, साथ ही रक्तदाताओं का डाटा बैंक भी विभाग के पास होना चाहिए ताकि आपातकालीन स्थिति के दौरान स्वयंसेवियों की मदद ली जा सके। मात्र प्रदर्शन के लिए गिनती की कॉलोनी एवं मोहल्ले में जाकर लारवा नष्ट करने से कुछ होने वाला नहीं है बल्कि इसके लिए जन सहभागिता एवं विभाग के अधिक से अधिक कर्मचारियों को धरातल पर उतरना होगा। डेंगू पर रोकथाम या नियंत्रण रखने के लिए आम जनमानस को भी सरकारी व्यवस्थाओं के साथ-साथ अपने आसपास ऐसी कोई स्थिति पैदा नहीं होने देनी चाहिए जो डेंगू के लार्वा को पनपना के लिए सहायक साबित होते हो।