संपादकीय

अब मौन क्यों कथित बुद्घिजीवी!

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महाराष्ट्र के पालघर में दो संतों को जिस प्रकार से भीड़ ने मौत के घाट उतारा वह बेहद ही चिंताजनक एवं कानून प्रबंधन पर करारा तमाचा है। संतों में एक तो साठ साल का संत था। यहां महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था भी पूरी तरह से ताश के पत्तों की तरह ढहती नजर आई। दुख की बात तो यह है कि कानून का पालन करने वाले ही एक वृद्घ संत को भीड़ के हवाले करता दिखा। कहीं से भी पुलिसकर्मियों द्वारा संतोंं को बचाने का प्रयास नहीं किया गया। पुलिसकर्मी चाहते तो संतोंं की जान बचाई जा सकती थी। हालांकि इस घटना को लॉकडाउन की अवधि के दौरान ही अंजाम दिया गया जो यह बताने के लिए काफी है कि महाराष्ट्र में उद्घव सरकार का अराजक तत्वों पर कोई अंकुश नहीं है। इस घटना के बाद पूरे संत समाज एवं हिंदुवादी संगठनों में बेहद रोष व्याप्त है। मामले की जांच सीआईडी को सौंपी गयी है लेकिन यह बेहद हैरान कर देने वाला है कि भीड़ कैसे पुलिस की मौजूद्गी में ही लॉकडाउन को तोड़ कर सड़कों पर आ गयी। जाहिर है कि दो संतों समेत तीन लोगों की भीड़ द्वारा की गयी हत्या के मामले में सियासी उफान भी आना तय है। जूना अखाड़ा भी लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र कूच की चेतावनी दे चुका है जिससे राज्य सरकार की मुसीबतें बढ चुकी हैं। महाराष्ट्र सरकार ने जरूर कई लोगों को गिरफ्तार किया है लेकिन इतने से यह मामला शांत हो जाएगा, इसकी उम्मीदें कम हैं। हैरानी बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश में एक धर्म विशेष के व्यक्ति की पिटाई से हुई मौत के बाद पूरे देश में डर का माहौल दिखा कर चिल्लाने वाले कथित बुद्घिजीवी भी मौन धारण किए हुए हैं। घटना को सांप्रदायिक रंग देने का भी प्रयास किया जा रहा है जिसे लेकर राज्य सरकार बेहद सतर्कता बरत रही है। यहां उन पुलिसकर्मियों पर भी सख्ती से कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने स्थिति संभालने के बजाए निरीह एवं निहत्थे धर्म गुरूओं को क्रोधित भीड़ के आगे सौंप दिया। एक बार भी इन पुलिसकर्मियों ने संतों को बचाने का प्रयास नहीं किया। यदि महाराष्ट्र पुलिस का आचरण और काम करने का तरीका ऐसा ही है तो समझ लेना चाहिए कि महाराष्ट्र में कोई भी सुरक्षित नहीं है। केंद्र सरकार को भी इस मामले में कड़े कदम उठाने चाहिए। संत समाज इस मामले में शांत बैठने वाला नहीं है। लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र सरकार के लिए यह मामला सिरदर्दी बन सकता है। जाहिर है कि अभी भी कई आरोपी आजाद घूम रहे हैं, जबकि मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों की सजा केवल उनका निलंबन नहीं है। ऐसे पुलिसकर्मियों को जो आम जनता की सुरक्षा की अपनी नैतिक जिम्मेदारी से भय खा जाएं उन्हें सेवा में रहने का कोई अधिकार नहीं है। राज्य सरकार को वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजना चाहिए। देश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिल्लाने वाले कुछ खास लोगों की जुबान अब क्यों बंद है, यह भी हैरान कर देने वाला है।

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