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झूठे निकले आश्वासन, मुंह चिढ़ा रहा गड्ढा

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अधुनिक बस अड्डे के नाम पर दशकों बाद भी मोटर नगर में दिख रहा केवल एक गड्ढा
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : विधानसभा चुनाव हो अथवा नगर निगम के चुनाव मोटर नगर में आधुनिक बस अड्ढे के नाम पर बना गड्ढा हर चुनाव में मुद्दा बनता है। लेकिन, आज भी यह गड्ढा आमजन को मुंह चिढ़ा रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि जहां प्रदेश सरकार क्षेत्र में पार्किंग सुविधा को लेकर पूरी तरह निष्क्रिय है, वहीं नगर निगम प्रशासन भी इस पूरे मामले में चैन की नींद सो रहा है। जबकि, शहर में पार्किग व्यवस्था नहीं होने से आमजन को लगातार परेशानी झेलनी पड़ रही है।
कोटद्वार में नगर निगम की मोटर नगर स्थित भूमि पर हुआ गड्ढा पिछले ग्यारह वर्षों से आमजन को मुंह चिढ़ा रहा है, वहीं क्षेत्र की उस राजनीति की भी कलई खुल रही है जिसमें विकास के दावे किए जाते हैं। बताना जरूरी है कि जिस सरकारी भूमि को बस अड्डा निर्माण के नाम पर खोदा गया वहां से ग्यारह वर्ष पूर्व तक बस व टैक्सियों का संचालन होता था। तत्कालीन नगर पालिका ने 23 मार्च 2013 को पीपीपी मोड पर मोटर नगर में आधुनिक बस टर्मिनल बनाने का कार्य एक निजी संस्था को सौंपा। संस्था ने मोटर नगर में बस अड्डे का निर्माण कार्य शुरू किया। पालिका ने मोटर नगर की 1.838 हेक्टेयर भूमि में से 1.5034 हेक्टेयर भूमि कंपनी को मुहैया करा दी। शर्त के तौर पर मार्च 2015 तक बस अड्डे का निर्माण पूर्ण कर नगर पालिका को सौंपा जाना था। करार होने के छ: माह बाद तक नगर पालिका ने मोटर नगर का भू-उपयोग परिवर्तित नहीं किया। निर्माण के करीब छ: माह बाद भू-उपयोग तो परिवर्तित हो गया, लेकिन जिस स्थान पर बस अड्डा निर्माण होना था, वहां पहले से ही दुकानें मौजूद थीं, जिस कारण मसला फिर लटक गया। इसके बाद भी नगर पालिका तय शर्तों के अनुसार मोटर नगर की पूरी भूमि खाली करवा कर संस्था को नहीं सौंपी। नतीजा, बस अड्डे का निर्माण अधर में लटक गया और यही स्थिति आज भी बरकरार है। क्षेत्र की जनता बस अड्डे के नाम पर बदहाल हुए मोटर नगर पर आंसू बहा रही है, लेकिन सरकारी सिस्टम बस अड्डे की राह में आ रहे रोड़ों को हटाने के बजाए आंखे मूंद कर बैठा है। बस अड्डा तो मिला नहीं, अलबत्ता बस अड्डे के नाम पर मिला बड़ा गड्ढा आज भी कायम है।

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