नई टिहरी। सरकार काश्तकारों को भले ही बागवानी के लिए प्रोत्साहित कर रही है। मगर काश्तकारों की मेहनत से उगायी खेती को बर्बाद कर रहे बंदर, लंगूरों से निजात दिलाने में सरकार विफल ही साबित हो रही है। जिसके चलते काश्तकार बागवानी छोड़ने को मजबूर हैं। देवप्रयाग के निकट गोर्थीकांडा गांव निवासी अब्बल सिंह भी उन काश्तकारों में हैं, जिन्होंने दिन-रात एक कर बेहतरीन नर्सरी बनाई, मगर लंगूरों ने उसे तहस नहस कर डाला। वन विभाग भी यहां लंगूरों से निजात दिलाने में बेबस बना है। काश्तकार अब्बल सिंह ने अपने बंजर पड़े खेतों में परम्परागत खेती के बजाय विभिन्न प्रजाति के फूलों, देशी विदेशी फलों, उन्नत दालों की नर्सरी तैयार की गयी। इसके लिए वह हिमाचल प्रदेश के बायोटेक लैब व अन्य राज्यों से उन्नत बीजों को लाये। वहीं सिंचाई के लिए टैंक भी बनाये। दिन-रात की मेहनत से बंजर पड़ी ज़मीन पर कुछ वर्षों में अखरोट, सेब, दालचीनी, आंवला, कागजी नींबू आदि के करीब 85 पेड़ तैयार हो गए। रात-दिन की मेहनत व चौकीदारी से तैयार नर्सरी पर लंगूरों की नजर पड़ते ही उन्होंने इसको तहस नहस करना शुरू कर दिया। लंगूरों ने यहां 25 फलदार पेड़ पूरी तरह तोड़ डाले वहीं फूल, दाल आदि की पौध भी नष्ट कर दी। अब्बल सिंह ने वन विभाग की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए कहा कि, वन विभाग के खानापूर्ति भरे रवैये से वह बागवानी छोड़ने को मजबूर होंगे। पहाड़ में बागवानी से रोजगार का सपना तभी पूरा होगा जब सरकार इसके लिए ठोस कदम उठायेगी।
– गोर्थीकांडा में तीन बार वन कर्मियों की टीम भेजी गयी, लेकिन उन्हें कहीं भी लंगूर नहीं दिखाई दिये। प्रभावित काश्तकार को पटाखे भी दिये गए हैं। बंदरों की तरह लंगूरों को पकड़ने की भी वन विभाग तैयारी कर रहा है। – एमएस रावत, रेंजर माणिकनाथ रेंज