मुनाफा कमाने की होड़ में लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने से भी नहीं गुरेज…
देहरादून। आखिर सभी लोग पहाड़ को कूड़ा खपाने की जगह क्यों समझते हैं। कम से कम इस महामारी के दौर में ऐसा नहीं होना चाहिए जी हां हम बात कर रहे हैं पहाड़ में दवाईयों के नाम नकली पैरासेटामोल, आक्सीमीटर के नाम पर घटिया क्वालिटी के आक्सीमीटर की सप्लाई, और अब कोरोना रोगियों के इलाज के लिए पहले से ही इस्तेमाल सर्जिकल ग्लव्स भेजने का मामला सामने आने की। बताते चलें कि पिछले दिनों सरकार ने पहाड़ के कई गावों में निशुल्क आक्सीमीटर खरीद कर भेजे और जो कि दिल्ली की एक कम्पनी ने सप्लाई किए। ये आक्सीमीटर जब लोगों ने इस्तेमाल किए तो पता चला कि ये पूरी तरह से गलत रीडिंग दे रहे हैं। इन आक्सीमीटर से रीडिंग देखने के बाद लोगों में हड़कम्प मच गया। ये मीटर सभी का आक्सीजन लेबल 60 से 76 के बीच दिखा रहे थे। बाद में पता चला कि ये मीटर ही खराब हैं। इस मामले में कम्पनी को बचाने के लिए कुछ सरकारी अधिकारी बयान देने लगे की पहाड़ के गांव ऊंचाई पर हैं और यहां आक्सीजन लेबल कम है इस कारण रीडिग कम आ रही है मीटर पूरी तरह से सही है लेकिन बाद में पता चला कि इन मीटरों की रीडिंग देहरादून में भी वही है जो अल्मोड़ा में थी। इसी तरह से चमोली के कुछ गांवों में जब पेरासीटामोल की गोली खाने के बाद भी बुखार नहीं उतरा तो पता चला कि जो पेरासेटामोल यहां दी जा रही है वह कुछ नहीं सिर्फ सफे द पाउडर की गोलियां हैं। यही नहीं कई और दवाईयां भी नकली हैं। इसके बाद अब अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पहले इस्तेमाल किए गये ग्लव्स भेजने का मामला सामने आया है । मामले की गंभीरता को समझते हुए जब लोगों ने पिथौरागढ़ के डीएम से शिकायत की तो डीएम ने स्टोर से ग्लव्ज की पेटी से पैकेट मंगाया। उसे खोलने पर डीएम भी हैरान रह गए। पैकेट के भीतर से जो ग्लव्ज निकले वे बेहद खराब स्थिति में थे। डीएम ने इसे बड़ी लापरवाही बताते हुए सीएमओ को ग्लव्स सप्लाई करने वाली कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए।
इस तरह मामलों से साफ पता चलता है कि सरकार में बैठे अधिकारी इसे कतई गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और मुनाफा कमाने की होड़ में ये सामान सप्लाई करने वाली कम्पनियां पहाड़ के लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने से भी गुरेज नहीं कर रही है।