प्रकृति को दी जा रही चुनौतियों का परिणाम हैं आपदाएं: प्रेमी बौड़ाई
जयन्त प्रतिनिधि।
श्रीनगर। उतराखंड से आपदाओं का यू तो वर्षों से नाता रहा है और हर साल मानसूनी सीजन में बारिश, बाढ़, भूस्खलन, बादल फटने की घटनाओं से जन-धन की हानि होती है, लेकिन अब मानूसनी सीजन ही नही बल्कि अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में भी बारिश से बाढ़ जैसे हालत पैदा हो रहे है। सोमवार को उतराखंड में बारिश के रेड अलर्ट के बाद एक दिन की बारिश से ही कई जगह पर भूस्खलन और सड़कों की अव्यवस्था पैदा हो गई है।
चीड़ हटाओ बांज लगाओ आन्दोलन के प्रेणता पर्यावरण प्रेमी रमेश चन्द बौड़ाई का कहना है कि उतराखंड में बीते एक-दो वर्षों से जिस तरह से पकृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है उसका परिणाम आना प्रारम्भ हो चुका है। मौसमी चक में हो रहे बदलाव का कारण है कि गर्मियों मे पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान मे बेतहाशा वृद्धि हो रही है और सर्दियों में मानसून जैसी बारिश हो रही है। मानसून सामान्य रहने के बावजूद फसल चक से लेकर नदियों के जलस्तर पर अप्रत्याशित बदलाव भी देखने को मिल रहे है। पर्यावरण प्रेमी बोडाई ने कहा कि उतराखंड में चारधाम सडक परियोजना और रेल लाइने परियोजनाओं का कार्य प्राकृतिक असन्तुलन पैदा कर रहा है। सड़क चौड़ीकरण के लिए पहाड़ों को बेतरतीब ढंग से काटा जा रहा है जिसका परिणाम है कि बारिश होते ही बड़े-बड़े भूस्खलन की घटनाएं सामने आ रही है। वहीं ऋषिकेश-बद्रीनाथ हाइवे पर अब कई भूस्खलन जोन तैयार हो चुके है। हाल ही में श्रीनगर के पास चमधार भूस्खलन जोन, देवप्रयाग और व्यासी के बीच बने भूस्खलन जोन इसके ताजा उदाहरण है जो भविष्य में इस हाइवे के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनेगें। उनका कहना है कि यदि सरकार जल्द से जल्द इन हालातों पर विशेष ध्यान नही देती है तो जिस प्रदेश को इसकी प्राकृतिक नैसर्गिकता के लिए पर्यटन प्रदेश के रूप में जाना जाता है वह पहचान आपदा प्रदेश के रूप में तब्दील हो जायेगी।