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नाराज सिद्धू का अध्यक्ष पद से इस्तीफा

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नई दिल्ली, एजेंसी। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्घू के अचानक अपने पद से इस्तीफे की खबर ने चंडीगढ़ से दिल्ली तक हलचल मचा दी। कहा जा रहा है कि इस तरह इस्तीफा देने से सिद्घू ने कांग्रेस को बुरी तरह फंसा दिया है। सिद्दू के कहने पर ही पार्टी आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब के कद्दावर नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को नाराज किया और उनकी कुर्सी तक चली गई। सिद्घू और अमरिंदर के बीच 36 का आंकड़ा था और पार्टी आलाकमान ने अमरिंदर के ऊपर उन्हें तरजीह दी। कैप्टन की नाराजगी की परवाह किए बिना पार्टी ने सिद्घू को प्रदेश कांग्रेस की कमान भी सौंप दी लेकिन उन्होंने चुनाव से पहले पार्टी के बिगड़े हालत को सुधारने के बजाए कांग्रेस को और उलझा दिया है।
सबसे पहली वजह तो यही मानी जा रही है कि वे खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को चुना। जब चन्नी सीएम बन गए तो उसके बाद नए सीएम के साथ उनकी कई मुद्दों पर नहीं बन रही थी। हालांकि सिद्घू ने अपने इस्तीफे में इस पर साफ तौर पर कुछ नहीं कहा लेकिन कहा यही जा रहा है कि नए मुख्यमंत्री के कैबिनेट में वे पोर्टफोलियो अपने हिसाब से नहीं बांटे जाने, नई कैबिनेट में सुखविंदर सिंह रंधावा को गृह मंत्री बनाए जाने और डीजीपी और मुख्य सचिव की नियुक्ति से लेकर कई ऐसे मुद्दे थे जिसे लेकर उनकी नए मुख्मयंत्री के साथ अनबन बढ़ गई थी। कहा जा रहा है कि सिद्घू ने चन्नी को 18 प्वाइंट का एंजेंडा सौंपा था, जिसे चन्नी ने मानने से इंकार कर दिया था। सिद्घू चन्नी के कई फैसलों से नाराज बताए जा रहे थे।
पंजाब कांग्रेस को बहुत करीब से जानने वाले वरिष्ठ विश्लेषक राजकुमार सिंह का मानना है कि कांग्रेस के लिए बहुत असहज स्थिति हो गई है, लेकिन इसे राजनीतिक नुकसान सिद्घू का हो गया। दूसरी बात यह है कि सिद्घू अब अमरिंदर सिंह के निशाने पर थे और सिद्घू के इस्तीफे के बाद अब उनके पास भी हमले की कोई वजह नहीं रह जाएगी।
पंजाब के एक नेता ने बताया यह पार्टी के लिए बहुत राहत की बात है कि बिना कुछ किए़.़. टल गई। उनमें (सिद्घू) अनुशासन और परिपक्वकता की भारी कमी है वे अपने हिसाब से पार्टी को चलाना चाहते थे। जब पार्टी सिंधिया के हिसाब नहीं चली, कुछ और नेताओं के हिसाब से नहीं चल रही, तो उनके हिसाब से क्या चलेगी।
पार्टी के एक विधायक के मुताबिक पार्टी ने चन्नी को सीएम बनाकर एक अच्छा संदेश देने की कोशिश की लेकिन उनको सबसे शिकायतें हैं और वो खत्म ही नहीं होती। सच बात तो यह है कि सोच रहे थे कि यहां सिसायत नहीं कमेडी शो या क्रिकेट चल रहा है जिसमें दर्शक हर बात पर ताली बजाएंगे।
कैप्टन की कुर्सी जाने के बाद पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया था कि खिलाफ अमरिंदर की गुटबाजी इसलिए काम कर गई थी कि पिछले कुछ समय से उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर चल रही थी। दूसरी तरफ पार्टी ने तीन सर्वे कराए थे जिसमें यह बात आई कि यदि इस बार कैप्टन के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया तो पार्टी को हार झेलनी पड़ सकती है। इसलिए सिद्घू के साथ उनके झगड़े ने पार्टी को एक वजह दे दी और कैप्टन को इस्तीफा देना पड़ा।
अभी तक अमरिंदर की पार्टी में इसलिए चल रही थी कि वे पंजाब के कद्दावर नेता थे और 2017 का चुनाव अपने बूते पर जीत कर आए थे। उससे पहले 2014 के चुनाव में मोदी लहर ने उन्होंने भाजपा के दिवंगत नेता अरुण जेटली को हराया था। लेकिन सिद्घू में नेतृत्व के वो गुण नहीं है लेकिन फिर भी पार्टी ने उन्हें अमरिंदर के ऊपर तवज्जो दी।
विश्लेषक कहते हैं कि इस तरह इस्तीफा देकर सिद्घू ने अपरिपक्वता दिखाई है। अभी जब चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं और उनके पास प्रदेश अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी थी, वे संगठन को मजबूत करने में ध्यान लगाते और चुनाव में कांग्रेस को मजबूती दिलाते तो पंजाब की राजनीति ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद बढ़ता। लेकिन सिद्घू ने एक बेहतरीन मौका खो दिया।

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