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बिहार में भ्रष्टाचार का एक और नमूना, पूर्णिया में ढलाई होते ही भरभराकर गिरा पुल, दो घायल

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पूर्णिया, एजेंसी। पूर्णिया के बायसी में 113़ 74 लाख का एक पुल ढलाई होते ही ध्वस्त हो गया। यह पुल ग्रामीण कार्य विभाग बायसी द्वारा बनवाया जा रहा था। मंगलवार को इस पुल की ढलाई की जा रही थी कि इसी दौरान पुल का आधा हिस्सा भरभरा कर गिर गया। इसके बाद निर्माणाधीन स्थव पर मौजूद इस पुल के संवेदक मुंशी भाग निकले। वहीं, पुल गिरने से दो मजदूर भी मामूली रूप से जख्मी हुए हैं, जिनका इलाज पास के निजी चिकित्सकों के यहां कराया गया।
बायसी के खपड़ा पंचायत में बनाए जा रहे इस पुल के संवेदक अमौर के रहने वाले मो़ तकसीर आलम हैं तथा निर्माण कार्य की देखरेख करने वाली एजेंसी ग्रामीण कार्य विभाग बायसी है। इस पुल की लंबाई 20़ 10 मीटर है तथा प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाए जा रहे इस पुल के बन जाने से खपड़ा पंचायत के दो गांव चौनी एवं मलहरिया आपस में जुड़ जाएंगे।
पुल के ढलाई होते ही ध्वस्त होने की सूचना मिलने के बाद विभागीय अधिकारियों में हड़कंप मच गया और वे भागे-भागे पुल निर्माणास्थल पर पहुंचे, जहां उनके पहुंचने तक स्थानीय ग्रामीणों की भीड़ भी जमा हो गई। बायसी के ग्रामीण कार्य विभाग के कार्यपालक अभियंता रामू प्रसाद ने माना किघ् ढलाई होते ही यह पुल संवेदक की लापरवाही के कारण ध्वस्त होकर गिरा है। उन्होंने यह भी बताया किघ् तीन दिन पूर्व उन्होंने खुद इस निर्माणाधीन पुल का निरीक्षण किया था और संवेदक को कई तरह के सुधार करने के बाद पुल की ढलाई करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद भी संवेदक ने बिना किसी सूचना के आज पुल की ढलाई शुरू कर दी, जिस कारण पुल के ध्वस्त होने की घटना घटी है।
ढलाई होते ही पुल ध्वस्त होने की खबर बाद विभागीय अधिकारी हरकत में आ गए। इस मामले में लापरवाह संवेदक मो़ तकसीर आलम को ब्घ्लैक लिस्ट में डालने के लिए राज्य मुख्यालय को रिपोर्ट भेजने की तैयारी शुरू कर दी गई है। कार्यपालक अभियंता रामू प्रसाद ने बताया की आज शाम होने के कारण इस मामले की रिपोर्ट पटना नहीं भेजी गई है। बुधवार को ब्घ्लैक लिस्ट में डालने को लेकर हर हाल में रिपोर्ट भेजी जाएगी।
बायसी के खपड़ा पंचायत में ढलाई होते ही ध्वस्त हुए पुल ने ग्रामीण कार्य विभाग में फैले भष्ट्राचार एवं कमीशनखोरी की कलई खोलकर रख दी है। पूर्व से ही कमीशन को लेकर विवादों में रहे इस विभाग में काम की गुणवत्ता कोई महत्व नहीं रखती, बल्कि कमीशन की रकम सब कुछ तय करती है। कमीशन का बोलबाला इस कदर है किघ् योजना के प्राक्कलन में जिस गुणवत्ता का उल्लेख किया जाता है, उसका अनुपालन दूर-दूर तक नहीं होता है।
कमीशन खाने वाले अधिकारी इस ओर से पूरी तरह से आंखें बंद कर लेते हैं। योजना में चाहे अच्छी किस्म के छड़ तथा मानक के अनुसार छड़ देने का मामला हो या फिर बालू एवं सीमेंट की किस्म का हो, सबमें घटिया सामान का ही उपयोग किया जाता है। जब यह पुल ही ढलाई होते धवस्त हो गया तो इस पुल से होकर गुजरने वाले बड़े वाहनों का बोझ यह पुल कितने दिनों तक बर्दाश्त कर पाता इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

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