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जम्मू-कश्मीर में स्थानीय प्रशासन फिलहाल नहीं चाहता चुनाव, 1 साल तक इलेक्शन न कराने का दिया सुझाव

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नई दिल्ली, एजेंसी। चुनाव आयोग भले ही मार्च के बाद कभी भी जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने को तैयार हो और वहां की राजनीतिक पार्टियां भी जल्द-से-जल्द चुनाव कराने की मांग कर रही हों, लेकिन आतंकवाद को जड़ से खत्म करने में जुटे स्थानीय प्रशासन के अधिकारी इसके पक्ष में नहीं हैं।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित जिलों पुलवामा, अनंतनाग, सोपियां, अवंतिपुरा, बडगाम के स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों की माने तो आतंकी नेटवर्क के खिलाफ बने माहौल को स्थायी बनाये रखने के लिए मौजूदा सिस्टम को कम-से-एक साल का समय और दिया जाना चाहिए। इन जिलों के अधिकारी राजनीतिक मुद्दों पर आधिकारिक रुप से बोलने से बचते हैं, लेकिन निजी बातचीत में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने में पुराने सिस्टम की खामियां बताने में नहीं चुकते हैं।
पुलवामा जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पुराने और नए सिस्टम का अंतर बताते हुए कहा कि 2019 के पहले जब भी किसी आतंकी संगठन के ओवरग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) को पकड़ते थे, तो उनके पास स्थानीय, जिले स्तर के कई राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों से जुड़े नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते थे।
आतंकियों को खुलेआम महिमामंडित किया किया जाता था और प्रशासन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाता था। लेकिन 2019 में अनुच्टेद 370 के खत्म होने के बाद स्थिति बिलकुल बदल गई है। अब ओजीडब्ल्यू की गिरफ्तारी के बाद कोई फोन नहीं आता है। आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में स्थानीय प्रशासन को मिली टूट के कारण आतंकवाद के पूरे इको सिस्टम को तोड़ने में मदद मिली है।
अनंतनाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बात सिर्फ आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में मिली खुली टूट का नहीं है, सरकारी योजनाओं को लागू करने में पारदर्शिता और निचले स्तर पर तेज गति से विकास कार्यों ने आम जनता में प्रशासन का भरोसा बढ़ा है। बैक टू विलेज जैसे प्रोग्राम से गांव जैसे सबसे निचली इकाई तक विकास योजनाओं की डिलिवरी सुनिश्चित हुई है। पंचायत से लेकर राज्य स्तर तक अत्याधुनिक खेल सुविधाओं का विकास युवाओं की ऊर्जा को नई दिशा देने का काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में कश्मीर की जनता के जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव को देखा जा सकता है।वैसे अधिकारी स्वीकार करते हैं कि लोकतंत्र में चुनाव को लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता है और जम्मू-कश्मीर में इसे जल्द कराना होगा। लेकिन उन्हें डर है कि विधानसभा चुनाव और नई सरकार आने के बाद कहीं राजनीतिक दखलअंदाजी फिर से नहीं बढ़ जाए। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कम-से-कम एक साल चुनाव नहीं होने की स्थिति में आतंकवाद के खिलाफ बनाई गई बढ़त को स्थायी करने का मौका मिल जाएगा।

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