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बेमौसम की बारिश उत्तराखंड में बनी काल,40 की मौत, 9 लापता

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हल्द्वानी। उत्तराखंड में भारी बारिश के दौरान हुए भूस्खलन की घटनाओं में 40 लोगों की मौत हो गई। नैनीताल जिले में ही 25 लोगों की मौत हुई है। मरने वालों में 14 उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूर शामिल हैं। नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लक में 9 मजदूर घर में ही जिंदा दफन हो गए। जबकि, झुतिया गांव में ही एक मकान मलबे में दबने से दंपति की मौत हो गई, जबकि उनका बेटा अभी लापता है। दोषापानी में 5 मजदूरों की दीवार के नीचे दबने से मौत हो गई।
कहां कितने लोगों की गई जानरू
नैनीताल जिले में ही क्वारब में 2, र्केची धाम के पास 2, बोहराकोट में 2 और ज्योलिकोट में एक की मौत हुई। अल्मोड़ा में छह लोगों की मलबे में दबने से मौत हुई है। जबकि, चंपावत में तीन और पिथौरागढ़-बागेश्वर में भी एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है। बाजपुर में तेज बहाव में बहने से एक किसान की मौत हो गई। उधर, बारिश का पानी घर में घुसने से फैले करंट से किच्छा में यूपी के देवरिया के विधायक कमलेश शुक्ला के घर में फैला करंट फैलने से बहू की मौत हो गई। नैनीताल के ओखलकांडा और चम्पावत में आठ लोग लापता हैं।
ट्रैकिंग रूट से लेकर यात्रा मार्ग और नदी किनारे पर ठहरे लोग फंसे
सोमवार – मंगलवार देर रात प्रदेश में आई आपदा के चलते एसडीआरएफ की टीमें रातभर बचाव और राहत अभियान में जुटी रहीं। एसडीआरएफ ने इस दौरान छह सौ से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में कामयाबी हासिल की। प्रदेश भर एसडीआरएफ की 29 स्थानों पर पोस्ट हैं। मौसम विभाग की ओर से भारी बारिश की चेतावनी के बाद, सभी टीमों को पहले ही हाई अलर्ट पर रखा गया था। इसी क्रम में एसडीआरएफ कमांडेंट नवनीत भुल्लर कंट्रोल रूम में डटकर, रातभर राहत और बचाव अभियान की निगरानी करते रहे। इस दौरान बारिश से हो रहे नुकसान, सड़क मार्ग पर फंसे वाहनों, पैदल मार्गों पर फंसे यात्रियों की जानकारी जुटाकर उन तक टीमें पहुंचाने का काम किया गया। बल की टीमों ने गौमुख ट्रैकिंग रूट, केदारनाथ पैदल मार्ग के साथ ही जगह बाढ़ और मलबे में फंसे लोगों को बचाने का काम किया। मंगलवार दोपहर बाद तक बल की टीमों ने छह सौ लोगों को सुरक्षित निकालने में कामयाबी हासिल की।
17 साल बाद टूटा गंगा का रिकार्ड
उत्तराखंड में ठीक सत्रह साल पहले भी अक्टूबर के महीने में गंगा ने खतरे का निशान पार किया था। सिंचाई विभाग के पूर्व एचओडी इंजीनियर डीपी जुगरान बताते हैं कि यह घटना 19 और 20 अक्टूबर 2003 की है। जुगरान उस दौरानाषिकेश बैराज पर अधिशासी अभियंता के रूप में तैनात थे। दीवाली की टुट्टी पर वो अपने घर श्रीनगर जाने की तैयारी कर रहे थे। दीवाली 25 अक्टूबर की थी। किसी को उम्मीद नहीं थी कि अक्टूबर में बारिश होगी। पर, 18-19 अक्टूबर को बारिश शुरू हुई और कुछ ही समय बाद उसने भयावह रूप ले लिया। नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ने लगा। जुगरान बताते हैं कि नदियों में इतना पानी बढ़ गया था कि बैराज को संभालना भारी पड़ गया। बैराज के फाटक भी खतरे में आ गए थे। अत्यधिक पानी होने की वजह से बैराज से डिस्चार्ज करना पड़ा। उस वर्ष भी अक्टूबर के महीने में गंगा खतरे के निशान के पार चली गई थी।

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