बंगाल में 50 से ज्यादा सीटों पर ओबीसी समुदाय का जबर्दस्त प्रभाव, वोट बैंक को साधने में जुटी भाजपा और टीएमसी
कोलकाता । जातिवादी राजनीति से अब तक दूर रहने वाले बंगाल में इस बार के विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के लिए जातियां महत्वपूर्ण हो गई हैं। बंगाल में 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर जबरदस्त प्रभाव रखने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय के बीच राजनीति बढ़त बनाने व उन्हें साधने के लिए सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और विपक्षी भाजपा दोनों ने ही अपने पत्ते खोल दिए हैं।
इसको इस बात से समझा जा सकता है जब तीन दिन पहले यहां के दौरे पर आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बंगाल में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि तृणमूल कांग्रेस जिन जातियों को ओबीसी कैटिगरी में शामिल करने के लिए रोड़े अटकाती रही उन जातियों को भाजपा सत्ता में आने के बाद पिछड़े वर्ग में शामिल करेगी। इसके बाद टीएमसी ने भाजपा के चौके का जवाब देते छक्का जड़ दिया।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को अपनी पार्टी टीएमसी का घोषणापत्र जारी किया, उसमें माहिष्य-तेली और साहा जैसी जातियों के लिए ओबीसी आरक्षण देने का वादा किया है। तृणमूल के इस दांव के बाद भाजपा भी अपने घोषणा-पत्र में ओबीसी समुदाय के लिए कोई बड़ा लोकलुभावन वादे करने की तैयारी में है। 21 मार्च, रविवार को खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कोलकाता में भाजपा का घोषणा-पत्र जारी करेंगे, जिस पर सभी की नजरें हैं।
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दक्षिण बंगाल के एससी, एसटी और ओबीसी जनसंख्या वाले जंगलमहल के जिलों सहित उत्तर 24 परगना और नदिया जिले में अच्छा प्रदर्शन किया था जबकि ये जिले टीएमसी के मजबूत किले माने जाते हैं। दरअसल, ओबीसी वोटों के ट्रांसफर के चलते ही भाजपा पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर, हुगली और हावड़ा जिलों में अच्छा प्रदर्शन कर सकी। इसलिए इन जिलों में जहां भाजपा को विधानसभा चुनाव में भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है, वहीं तृणमूल कांग्रेस एक बार फिर से आरक्षण का वादा करके पुनर्वापसी करना चाहती है।
बताते चलें कि 2011 जब पहली बार ममता बनर्जी ने बंगाल में सरकार बनाई, उसके एक साल बाद ही बंगाल बैकवर्ड क्लास बिल 2012 पेश किया। ममता सरकार ने सैयद और सिद्दीकी जातियों को छोड़कर सभी मुस्लिमों को इस सूची में शामिल कर लिया था। हिंदुओं में कंसारी, कहार, मिड्डस, कपाली, कर्माकर, कुंभकार, कुर्मी, मांझी, मोदक, नापिट्स, सूत्रधार, स्वर्णकार, तेली और कोलू जातियों को भी ओबीसी जातियों में शामिल कर लिया। इधर, पश्चिम बंगाल के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अनुसार, करीब 38 लाख लोगों को ओबीसी का सद्दटफिकेट पहले ही जारी किया गया। इसके अलावा अभी हाल ही में दुआरे सरकार योजना के तहत भी हजारों सद्दटफिकेट जारी किया गया।
बताते चलें कि बंगाल में माहिष्य, तोमर, तेली और साहा जातियों का राज्य में करीब 50 सीटों पर जबर्दस्त प्रभाव है। स्वतंत्रता आंदोलन में इन जातियों के बीरेंद्रनाथ सस्मल, सुशील धारा और सतीश समांता जैसे नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ जबर्दस्त लड़ाई लड़ी थी। भारत छोड़ो आंदोलन के समय इन नेताओं के नेतृत्व में पूर्व मेदिनीपुर जिले में ताम्रलिप्त जातीय सरकार की भी स्थापना हुई थी, जिसमें न केवल पुलिस स्टेशन बल्कि अपना रेवेन्यू कलेक्शन भी स्थापित किया था।