2024 के पहले पीएम मोदी को किसानों ने घेरा, बजट में बड़ी हिस्सेदारी के लिए दबाव की रणनीति
नई दिल्ली, एजेंसी। तीन विवादित षि कानूनों को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को झुका चुके किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं। सोमवार 19 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे 50 हजार से ज्यादा किसानों (ज्ञपेंद ळंतरंदं त्ंससल) ने केंद्र सरकार को खुली चुनौती दी कि उनकी मांगें मानी जाएं अन्यथा एक बार फिर वे आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं। किसानों की मांग है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अंतर्गत दी जा रही आर्थिक सहायता (वर्तमान में छह हजार रुपये वार्षिक) को 12 हजार रुपये तक बढ़ाया जाए और उनकी फसलों के लिए उचित भुगतान की दर तय की जाए। किसान गन्ना फसलों का समयबद्घ भुगतान, पराली जलाने पर दर्ज हो रहे केसों को वापस लेने और बिजली-जमीन मुआवजा नीति सही करने की मांग भी कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि यदि सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती है तो वे आंदोलन की राह पकड़ने के लिए बाध्य होंगे।
किसान संघ के सूत्रों के मुताबिक, किसान आगामी बजट सत्र को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति अपना रहे हैं। उनकी कोशिश है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इस अंतिम पूर्ण बजट में किसानों के लिए बेहतर आर्थिक नीतियों की घोषणा कराने में सफलता हासिल की जाए। इसमें पीएम किसान निधि के अंतर्गत आर्थिक सहायता बढ़ाना मुख्य रूप से शामिल है। इसके अलावा षि उत्पादों पर जीएसटी लागू करने पर रोक लगाना और ट्रैक्टर पर खरीद के 10 साल बाद इस्तेमाल पर लगने वाला प्रतिबंध समाप्त करना भी मुख्य मांगों में शामिल है।
चूंकि, वर्ष 2024 के अप्रैल-मई माह में लोकसभा के चुनाव होने हैं, उसके पहले फरवरी माह में पेश किया जाने वाला बजट संसद से अगले दो-तीन महीनों के लिए आवश्यक खर्च करने की अनुमति लेने तक ही सीमित रहेगा। लोकसभा चुनाव के बाद आने वाली नई सरकार अपने गठन के बाद आयोजित होने वाले संसद सत्र में पूर्ण बजट पेश करेगी। लिहाजा आगामी बजट सत्र सही मायने में वर्तमान सरकार का अंतिम पूर्ण बजट होगा। यही कारण है कि किसान मोदी सरकार से इस सत्र में अपनी अधिकतम मांगें मनवाने के मूड में हैं।
भारतीय किसान संघ के दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष हरपाल सिंह डागर ने अमर उजाला से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तमाम दावों के बाद भी सच्चाई यह है कि आज भी गन्ना किसानों को उनकी फसल का भुगतान मिलने में आठ से नौ महीनों का समय लग रहा है। कानूनन यह भुगतान 14 दिन के अंदर हो जाना चाहिए, देरी होने पर ब्याज सहित भुगतान किया जाना चाहिए। लेकिन किसानों को उनकी अपनी ही फसल का मूल्य नहीं मिल पाता, जबकि इसी बीच वे महाजनों से लिए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए मजबूर होते हैं।
इसी प्रकार किसानों की भूमि लेने पर कितना मुआवजा दिया जाए, इस पर कोई सुविचारित नीति नहीं है। इस पर एक स्पष्ट नीति बननी चाहिए। दिल्ली, राजस्थान और पंजाब के किसानों को पराली जलाने पर केस दर्ज किया जाता है और उनसे जुर्माना वसूला जाता है। अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि कुल प्रदूषण में पराली की हिस्सेदारी केवल 6 फीसदी तक सीमित है, यह भी केवल 15-20 दिनों तक सीमित रहता है। इसके बाद भी किसानों को पराली के नाम पर तंग किया जाता है। जबकि बाकी के 94 फीसदी प्रदूषण करने वालों पर कोई केस दर्ज नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि यह भेदभाव बंद होना चाहिए और किसानों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। जीएम सरसों के बीजों को लेकर भी किसानों में नाराजगी है। किसान चाहते हैं कि उन्हें नई बीजों को अपनाने के लिए बाध्य न किया जाए। दिल्ली में जमीन का म्यूटेशन बंद है, इसे तुरंत शुरू किया जाए।