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त्रिपुरा में कांग्रेस-वामदल गठबंधन का बड़ा दांव

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नई दिल्ली, एजेंसी। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव को अब पांच दिन ही बचे हैं। 16 फरवरी को यहां वोटिंग है। इसके ठीक पहले कांग्रेस और वामदल गठबंधन ने बड़ा दांव चल दिया है। कांग्रेस ने एलान किया है कि राज्य में अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो आदिवासी चेहरे को ही सूबे की कमान सौंपी जाएगी।
कांग्रेस के महासचिव अगर वाम-कांग्रेस गठबंधन चुनाव जीतती है तो माकपा के एक वरिष्ठ आदिवासी नेता त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बनेंगे। बता दें कि त्रिपुरा में जितेंद्र चौधरी आदिवासी समुदाय से आने वाले सीपीआई (एम) के बड़े नेताओं में से एक हैं। चौधरी के नाम पर ही सबसे ज्यादा चर्चा चल रही है।
त्रिपुरा में पिछली बार यानी 2018 चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। भाजपा ने 25 साल से शासन कर रहे लेफ्ट-कांग्रेस को बेदखल किया था। इस जीत के नायक रहे तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिप्लब देब को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि, 2022 में भाजपा ने देब की जगह मानिक साहा को राज्य की कमान सौंप दी। अब साहा पर भाजपा को सत्ता में वापसी कराने की जिम्मेदारी है।
हालांकि, बीते कुछ महीनों से राज्य में सियासी उथलपुथल जारी है। एक तरफ भाजपा ने 2018 में जीत दिलाने वाले बिप्लब कुमार देब को हटाकर मानिक साहा को मुख्यमंत्री बना दिया तो कई नेता पार्टी से अलग भी हो गए। भाजपा नेता हंगशा कुमार त्रिपुरा इस साल अगस्त में अपने 6,000 आदिवासी समर्थकों के साथ टिपरा मोथा में शामिल हो गए। वहीं, आदिवासी अधिकार पार्टी भाजपा विरोधी राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही कई नेता पार्टियां बदल रहे हैं। हमेशा एक-दूसरे की धुर विरोधी रही कांग्रेस और सीपीएम ने इस बार हाथ मिला लिया है। दोनों ही पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का एलान किया है।
कांग्रेस महासचिव के बयान से ठीक एक दिन पहले माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी थी। जब मीडिया ने मुख्यमंत्री पद के दावेदार को लेकर सवाल पूछा था तो उन्होंने कहा था कि इसका फैसला चुनाव के बाद विधायक करेंगे। बता दें कि इस बार सीनियर वामपंथी नेता और चार बार सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके माणिक सरकार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इसके चलते अब सीपीआई (एम) में नए चेहरों को आगे बढ़ाया जा सकता है।

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