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दिल्ली अध्यादेश से जुड़ा बिल लोकसभा से पास: शाह बोले- दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं, संसद को कानून बनाने का अधिकार

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नई दिल्ली, एजेंसी। राजधानी दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति औैर स्थानांतरण मामले में उपराज्यपाल के फैसले को अंतिम माने जाने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक लोकसभा से पारित हो गया। विधेयक पर हुई चाढ़े चार घंटे की चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री ने विपक्ष के रवैये पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि विपक्ष को देशहित, दिल्ली के हित की चिंता नहीं बल्कि गठबंधन बचाने की चिंता है। उन्होंने पूछा कि आज विपक्ष को मणिपुर हिंसा की याद क्यों नहीं आ रही? विपक्ष आज प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की मांग क्यों नहीं कर रहा? इससे पहले भी जब नौ विधेयक पारित हुए, तब विपक्ष ने चर्चा में हिस्सा क्यों नहीं लिया?
शाह ने कहा कि जो विधेयक पारित हुए वह जनहित, किसान हित से संबंधित थे। विपक्ष के रवैये से साफ हो गया है कि उसे बस अपने गठबंधन की चिंता है। उन्होंने कहा कि इस बिल को संसद में लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किसी तरह से उल्लंघन नहीं किया गया है। संविधान के तहत संसद को दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र से संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने का पूर्ण अधिकार है।
इससे पहले अमित शाह ने ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक, 2023’ को चर्चा और पास कराने के लिए निचले सदन रखा। उन्होंने कहा कि दिल्ली न तो पूर्ण राज्य है, न ही पूर्ण संघ शासित प्रदेश है। राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 239 (ए) (ए) में इसके लिए एक विशेष प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 239 (ए) (ए) के तहत इस संसद को दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र या इससे संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
अमित शाह ने कहा कि कुछ सदस्यों ने कहा कि इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करके लाया गया है, लेकिन वह उन सदस्यों से कहना चाहते हैं कि कोर्ट के फैसले के मनपसंद हिस्से की बजाए पूरा संदर्भ दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में पैरा 86, पैरा 95 और पैरा 164 (एफ) में स्पष्ट किया गया है कि अनुच्छेद 239 (ए) (ए) में संसद को दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के विषय पर कानून बनाने का अधिकार है।
अमित शाह ने कहा कि पट्टाभि सीतारमैया समिति ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की सिफारिश की थी। जब यह विषय तत्कालीन संविधान सभा के समक्ष आया, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, राजाजी (राजगोपालाचारी), डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. भीमराव आंबेडकर ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज दिये जाने का विरोध किया था।
उन्होंने कहा कि 1993 के बाद दिल्ली में कभी कांग्रेस और कभी भाजपा की सरकार आई। दोनों में से किसी दल ने दूसरे के साथ झगड़ा नहीं किया, लेकिन 2015 में ऐसी सरकार आई, जिसका मकसद सेवा करना नहीं, झगड़ा करना है। उन्होंने कहा कि इनका मकसद कानून व्यवस्था और स्थानांतरण पर नियंत्रण नहीं, बल्कि विजिलेंस को नियंत्रण में लेकर बंगले और भ्रष्टाचार का सच छिपाना है।
अमित शाह ने कहा कि मेरी विनती है कि चुनाव जीतने के लिए, किसी का समर्थन हासिल करने के लिए, किसी विधेयक का समर्थन या विरोध करने की राजनीति नहीं करनी चाहिए। नया गठबंधन बनाने के कई तरीके होते हैं, विधेयक और कानून देश के भले के लिए लाए जाते हैं, इसका विरोध या समर्थन भी देश और दिल्ली के भले के लिए करना चाहिए। आप दिल्ली की सोचिए, गठबंधन की नहीं।
लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्षी गठबंधन बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे।
चर्चा पर लोकसभा में कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि अगर दिल्ली में ऐसी छेड़खानी होती रहेगी तो आप अन्य राज्यों के लिए भी ऐसे बिल लाते रहेंगे। अगर आपको लगता है कि यहां घोटाला होता है तो उसके लिए आपको यह बिल लाना जरूरी था? आपके पास एऊ, उइक, कळ है, आप उसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते?
चर्चा में हिस्सा लेते हुए विपक्षी गठबंधन इंडिया के सहयोगियों, एआईएमआईएम ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, एनके प्रेमचंद्रन, असदुद्दीन औवैसी, डीएमके के दयानिधि मारन, एनसीपी की सुप्रिया सुले ने सरकार पर चुनी हुई सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया। अधीर ने कहा कि अगर सबकुछ केंद्र सरकार को ही करना है तो दिल्ली में चुनी हुई सरकार और विधानसभा का क्या मतलब है? उन्होंने कहा कि विधेयक के जरिए मोदी सरकार देश की संघवाद की भावना को नुकसान पहुंचा रही है।
विधेयक पारित होने के बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी के प्रस्ताव पर स्पीकर ओम बिरला ने आप के इकलौते सांसद सुशील कुमार रिंकू को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया। दरअसल विधेयक पर चर्चा के दौरान सांसद रिंकू वेल में आए और बिल की प्रति फाड़ कर आसन की ओर फेंका। जोशी ने इसे सदन का अपमान बताते हुए उन्हें पूरे सत्र के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव रखा। स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि रिंकू ने सदन की गरिमा और मर्यादा को ठेस पहुंचाई है।
सरकार की योजना विधेयक को शुक्रवार को राज्यसभा में पेश करने की है। विपक्षी एकता की मुहिम से दूरी बनाने वाले दलों बीजेडी, टीडीपी, वाईएसआरसीपी ने उच्च सदन में विधेयक का समर्थन करने की घोषणा की है। इसके अलावा बसपा ने राज्यसभा में मतदान से अनुपस्थित रहने का फैसला किया है। लोकसभा में भी इन दलों ने विधेयक पर सरकार का साथ दिया। इन दलों के समर्थन के बाद उच्च सदन में भी विधेयक के पारित होने का रास्ता साफ हो गया है।
विधेयक में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम में संशोधन कर अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण पर फैसला लेने के लिए प्राधिकरण बनाने का प्रावधान है। प्राधिकरण में मुख्यमंत्री को भी शामिल किया गया है। हालांकि, इस मामले में फैसला लेने का अंतिम अधिकार उपराज्यपाल को दिया गया है।

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