सीएम धामी ने कहा- आज भी हर दुकान और संस्थान में सुनाई देता है एक नाम ‘छोटू’
देहरादून। देश में बालकों की सुरक्षा, उसके बालपन और यौवन को बचाने के लिए पोक्सो अधिनियम के साथ किशोर न्याय अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण कानून बने हुए हैं, लेकिन क्या हम इन कानूनों के बाद भी बालकों को उनके अधिकार और सुरक्षा दिला पा रहे हैं। आज भी आज भी हर दुकान, ढाबे और संस्थान में एक बालक काम करते हुए दिख जाता है, जिसको सर्वत्र नाम ‘छोटू’ मिला हुआ है।
सुद्घोवाला स्थित एक होटल में पोक्सो अधिनियम 2012 के संबंध में ‘राज्य स्तरीय परामर्श संवाद’ कार्यक्रम में भाग ले रहे वक्ताओं ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 के उपबंदों में व्यवस्था दी गई है। कोई भी आम व्यक्ति सड़क, दुकान, संस्थान में काम करते हुए किसी भी बालक का संज्ञान लेकर उचित माध्यम से कार्रवाई करा सकता है, लेकिन लोगों को लगता है कि यह काम तो केवल पुलिस, प्रशासन और संबंधित अधिकारियों का ही है। जबकि आम व्यक्ति को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि पोक्सो अधिनियम और अन्य महत्वपूर्ण विषयों के संबंध में मंथन से जो भी निष्कर्ष निकलेगा, राज्य सरकार उन अपेक्षाओं के अनुरूप प्रतिबद्घता से कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है। इस कार्यशाला में कार्य पालिका, न्याय पालिका और विधायिका के प्रतिनिधि मंथन कर रहे हैं। कार्यक्रम निश्चित रूप से बच्चों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि बच्चों का हित सबके लिए सर्वोपरि है।
संवाद कार्यक्रम में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने वर्चुअल प्रतिभाग किया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी, न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने अपने व्याख्यान दिए। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल, उत्तराखंड बाल संरक्षण अधिकार आयोग की अध्यक्ष ड. गीता खन्ना, एडवोकेट जनरल एस़ एन बाबुलकर, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, डीजीपी अशोक कुमार, रजिस्ट्रार जनरल उत्तराखंड हाईकोर्ट विवेक भारती शर्मा, सचिव महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास एचसी सेमवाल, डीआईजी गढ़वाल केएस नगन्याल, जिलाधिकारी देहरादून सोनिका, एसएसपी दलीप सिंह कुंवर आदि उपस्थित रहे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में समान नागरिकता संहिता लागू करने की दिशा में सरकार आगे बढ़ी है। इसके लिए गठित कमेटी की ओर से ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है, जन सुझाव भी लिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सरलीकरण, समाधान, निस्तारण एवं संतुष्टि के मंत्र पर कार्य कर रही है। जन समस्याओं का त्वरित समाधान हो, इसके लिए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं।
कार्यक्रम में न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने बताया कि 31 अगस्त 2022 के आंकड़ों के अनुसार, जेजे बोर्ड में 1176 मामले लंबित हैं। इसमें 2010 का एक, 2013 का एक 2018 के 19, 2020 के 162 और 2021 के 346 मामले लंबित हैं। उन्होंने सवाल उठाया क्यों बालकों को न्याय के लिए इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। कहा कि राज्यों की नीति ऐसी होनी चाहिए, ताकि उनका उत्पीड़न न हो सके। उनके बालपन और यौवन का शोषण न हो सके। पिछले दशक में बालकों के यौन हिंसा के मामलों में वृद्घि देखने को मिली।
न्यायमूर्ति ने कहा कि बालकों के अपराध करने की दिशा में उनके मामलों में छह माह से पूर्व जांच पूरी की जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो छोटे मामलों को बंद कर देना चाहिए, जबकि बड़े मामलों की जांच मजिस्ट्रेट की देखरेख में होनी चाहिए। बालकों के अपराध के मामलों में जांच के समय परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है, लेकिन कई बार देखने में आया है कि परिवीक्षा अधिकारी की ओर से जांच के लिए अपने सहायक को भेज दिया जाता है।
संवाद कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कहा कि देश में बालकों की सुरक्षा और उन्हें न्याय दिलाने के लिए तमाम नीतियां और कानून बने हैं। उनमें कोई कमी नहीं है, लेकिन उनका पालन किस तरह से हो रहा है, यह देखने वाली बात है। उत्तराखंड में निराश्रित बालकों के लिए केवल चार ओपन सेंटर बनाए गए हैं, जबकि इनकी संख्या बढ़ाने की जरूरत है, ताकि किसी बच्चे को सड़क पर सोने के लिए मजबूर न होना पड़े।