कोरोना अलर्ट: नए वैरिएंट ‘एक्सई’ की दस्तक
, डब्ल्यूएचओ ने चेताया- यह ओमिक्रॉन से 10 फीसदी ज्यादा खतरनाक
नई दिल्ली, एजेंसी। कोरोना महामारी की धीमी पड़ रही रफ्तार के बीच एक कोरोना के नए स्वरूप ‘एक्सई’ ने दुनिया में दस्तक दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि नया वैरिएंट ओमिक्रन से 10 फीसदी ज्यादा संक्रामक है। रिपोर्ट के मुताबिक, एक्सई ओमिक्रन के दो संस्करणों बीए़1 और बीए ़ 2 से मिलकर बना है। हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि जब तक एक्सई वेरिएंट के ट्रांसमिशन और बीमारी के व्यवहार में महत्वपूर्ण बदलाव नहीं देखा जाता तब तक इसे ओमिक्रन वैरिएंट से ही जोड़कर देखा जाएगा।
ब्रिटेन की ब्रिटिश हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी के हालिया अध्ययन से पता चला है कि वर्तमान में 3 हाइब्रिड कोविड वैरिएंट चल रहे हैं। इसमें डेल्टा और बीए़1 दो अलग-अलग स्वरूप एक्सडी और एक्सएफ से मिलकर बना है, जबकि तीसरा एक्स है। इनमें से एक्सडी फ्रेंच डेल्टा वेरिएंट एक्स बीए़1 वंश का नया सदस्य है। इसमें इसमें बीए़1 का स्पाइक प्रोटीन और डेल्टा का जीनोम होता है। वर्तमान में इसमें 10 से ज्यादा क्रम शामिल हैं।
वहीं, एक्सएफ ब्रिटिश डेल्टा एक्स बीए़1 वंश से संबंधित हैं। इसमें बीए़1 का स्पाइक और संरचनात्मक प्रोटीन होते हैं लेकिन डेल्टा के जीनोम का 5 वां हिस्सा ही होता है। एक्सई भी ब्रिटिश डेल्टा बीए़1 एक्स बीए़2 वंश से संबंधित है। इसमें बीए़2 से स्पाइक और संरचनात्मक प्रोटीन होते हैं लेकिन इसमें भी बीए़1 के जीनोम का 5वां हिस्सा होता है।
डब्लूएचओ ने कहा कि एक्सई के बारे में पहली बार ब्रिटेन में 19 जनवरी, 2022 को पता चला था। अभी तक इसके 600 से ज्यादा मामलों की पुष्टि हुई है। हालांकि, इस वैरिएंट को लेकर हमें और अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी की मुख्य चिकित्सा सलाहकार सुजैन हपकिंस का कहना है कि अभी नए वैरिएंट एक्सई की संक्रामकता, गंभीरता के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इस पर टीके काम करेंगे या नहीं यह भी पता नहीं है।
प्रसिद्घ वायरोलजिस्ट टम पीकक ने कहा कि रिकम्बिनेंट वैरिएंट भी पहले के वैरिएंट के जैसे ही खतरनाक हो सकते हैं। इनमें एक ही वायरस (जैसे एक्सई या एक्सएफ) से स्पाइक और संरचनात्मक प्रोटीन होते हैं। इनमें से एक्सडी सबसे अधिक चिंता वाला वैरिएंट लग रहा है। इस वैरिएंट से संक्रमित मरीज जर्मनी, नीदरलैंड और डेनमार्क में मिल चुके हैं।
भारत में जानलेवा वायरस पर ऐसे पाया काबू
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव ने बताया कि बड़े पैमाने पर टीकाकरण और वैरिएंट पर शोध के कारण हम ओमिक्रन पर काबू पा सके। हमें पता था कि महामारी आ रही है और भारत को इससे निपटने के लिए संसाधनों को जमा करना होगा और हमने किया। जनवरी के बाद हमें राहत मिली जब अधिकांश मामले असिम्पटोमेटिक थे। कम मृत्यु दर के साथ कोरोना का यह वैरिएंट उतना प्रभावशाली नहीं था।
उन्होंने कहा कि डेल्टा और अन्य खतरनाक एवं चिंताजनक वैरिएंट के मामले में पहली खुराक में कोविशील्ड और दूसरी खुराक में कोवाक्सिन दिए जाने पर अच्टे नतीजे मिले। अध्ययन के निष्कर्ष जर्नल अफ ट्रैवल मेडिसिन में प्रकाशित किए गए हैं। यादव ने कहा कि अध्ययन के तहत तीन श्रेणियों में टीके के प्रभाव का आकलन किया गया और परीक्षण के तहत सभी लोगों की नजदीक से निगरानी की गई। इससे पता चला कि ओमिक्रन के मामले में टीकाकरण उपरांत बनी प्रतिरोधी क्षमता छह महीने बाद कमजोर होने लगी। इससे टीकाकरण रणनीति में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है।