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दो दशक में चक्रवाती तूफान से होने वाली मौतें 88% घटीं, इनसे निपटने में कैसे सफल हुआ भारत?

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नई दिल्ली , एजेंसी। चक्रवाती तूफान बिपरजॉय चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल के कुछ वर्षों में भारतीय क्षेत्र में चक्रवातों का सिलसिला बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन को इसकी वजह बताया जाता है। भारत ने इनसे निपटने के लिए पूर्व चेतवानी जैसे मानक बदलाव लागू किए हैं। इसका नतीजा यह रहा है कि चक्रवात अब उतने बड़े खतरे नहीं रह गए हैं जितने 2000 के दशक की शुरुआत तक थे।
भारत, अपनी असामान्य भू-जलवायु और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण, बाढ़, सूखा, चक्रवात, सूनामी, भूकंप, शहरी बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन और जंगल की आग के लिए अलग-अलग स्तर में असुरक्षित है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक, देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 आपदा प्रभावित हैं।
7,516 किमी के समुद्र तट में से, 5,700 किमी चक्रवात और सुनामी के प्रति संवेदनशील है। भारत की लंबी तटरेखा दुनिया के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के 10% के संपर्क में है। भारत के पश्चिमी और पूर्वी तट अक्सर चक्रवाती तूफानों का सामना करते हैं। कम से कम 13 तटीय क्षेत्र और केंद्र शासित प्रदेश चक्रवात की चपेट में हैं। इनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं।
मार्च 2021 में लोकसभा में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2020 में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर पांच चक्रवात बने जबकि भारतीय तट पर चार चक्रवात टकराए। इस साल 113 लोगों की जान चली गई।
इसी तरह 2019 में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर बनने वाले चक्रवातों की कुल संख्या आठ थी जबकि भारतीय तट पर दो चक्रवात टकराए। इस दौरान 105 लोगों की मौत हुई। साल 2018 में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर सात चक्रवात बने जबकि भारतीय तट पर तीन चक्रवात टकराए। इस दौरान 131 लोगों की मौत हुई।
साल 2017 में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर तीन ही चक्रवात बने। साल 2016 में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर चार चक्रवात बने जबकि भारतीय तट पर एक चक्रवात टकराए। इस दौरान छह लोगों की मौत हुई। साल 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन द्वारा प्रकाशित शोध अध्ययन में कहा गया कि 2000 से 2019 के बीच चक्रवात के कारण होने वाली मौतों की संख्या में काफी कमी आई है। 1970-2019 से 50 वर्षों में 117 चक्रवात भारत में आए, जिसमें 40,000 से अधिक लोगों की जान चली गई। अध्ययन में कहा गया है कि 1971 में बंगाल की खाड़ी में चार उष्णकटिबंधीय चक्रवात बने थे। एक विनाशकारी तूफान 30 अक्टूबर, 1971 की सुबह ओडिशा तट पर टकराया था जिससे जान और माल को बहुत गंभीर नुकसान पहुंचा था। करीब 10,000 लोगों के मारे गए और दस लाख से अधिक लोग बेघर हो गए। 1977 में बंगाल की खाड़ी के ऊपर दो उष्णकटिबंधीय चक्रवात बने, जिनमें से दूसरा 200 किलोमीटर प्रति घंटे की हवा की गति के साथ एक बहुत ही गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवात चिराला था। पांच मीटर ऊंची लहरें तटीय आंध्र प्रदेश से टकराईं। अनुमानित मृत्यु लगभग 10,000 थी और बुनियादी ढांचे और फसलों को कुल नुकसान उस समय 2.5 करोड़ से अधिक था। अकेले 1970-1980 के दशक में चक्रवातों के कारण 20,000 से अधिक मृत्यु दर्ज की गई। हालांकि, विश्लेषण से आगे पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से जुड़ी मृत्यु दर गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बढ़ती प्रवृत्ति के बावजूद, 2000-2009 की तुलना में 2010-2019 में 88 प्रतिशत घट गई। बीते कई वर्षों में भारत ने चक्रवातों के लिए तीन-स्तरीय प्रतिक्रिया तंत्र पर काम किया है। पहला सॉफ्टवेयर से संबंधित है जिसमें एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, स्थानीय आबादी के बीच जागरुकता पैदा करना, निकासी योजना और अभ्यास, प्रशिक्षण और सूचना का प्रसार शामिल है। दूसरे स्तर पर लोगों और मवेशियों को स्थानांतरित करने के लिए आश्रयों का निर्माण, मौसम उपकरणों की स्थापना और बेहतर पूर्वानुमान के लिए चेतावनी केंद्र और तटबंधों का निर्माण, सड़कों और पुलों को जोड़ना। अंतिम स्तर तटीय बुनियादी ढांचे को चक्रवातों के प्रति लचीला बनाने के बारे में है। इसके लिए बिजली लाइनों या पानी की आपूर्ति लाइनों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को भूमिगत किया जाना है ताकि रेलवे नेटवर्क और हवाई अड्डे जलमग्न न हों और काम करना जारी रखें और स्वास्थ्य व्यवस्था बाधित न हो। इस प्रतिक्रिया प्रणाली की पहले दो स्तर पर काफी मात्रा में काम पूरा किया जा चुका है। यही वजह है कि चक्रवातों की सटीक भविष्यवाणी कई दिनों पहले की जाती है और जनहानि में भारी कमी आई है। तीसरे स्तर पर अभी काम चल रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा कहते हैं, ‘आईएमडी की पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार के साथ पिछले कुछ वर्षों में चक्रवातों के दौरान मौत के कारणों में बदलाव आया है। पहले तूफान मौत का प्रमुख कारण था, लेकिन अब ज्यादातर मौतें पेड़ या घर के गिरने से होती हैं। समय के साथ-साथ पूर्वानुमान और साथ ही इन घटनाओं से निपटने की प्रक्रिया में काफी बदलाव आया है। अब पूर्व चेतावनी के साथ निचले इलाकों से लोगों को निकाल लिया जाता है।’

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