उत्तराखंड

प्रसिद्घ कमलेश्वर महादेव में घृत कमल अनुष्ठान में उमड़े श्रद्घालु

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श्रीनगर।  प्रसिद्घ कमलेश्वर महादेव मंदिर में वर्षों से चली आ रही पौराणिक परम्परा घृतकमल अनुष्ठान गुरुवार को विधिविधान के साथ सम्पन्न हुआ। पूजा में दूर दराज से पहुंचे लोगों ने भगवान शिव और मंहत का आशीर्वाद लिया। महंत ने द्गिंबर अवस्था में जमीन पर लोटकर कमलेश्वर महादेव की आराधना कर विश्व कल्याण की कामना की। गुरुवार रात्रि 8 बजे से कमलेश्वर महादेव मंदिर में घृत कमल अनुष्ठान किया गया। यह अनुष्ठान प्रत्येक वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को कमलेश्वर महादेव मंदिर में किया जाता है। महंत आशुतोष पुरी ने शाम आठ बजे से शिव की पूजा शुरू की। इसमें भगवान शिव की तीन बार सांग-पांग पूजा (पूजा की विधि) संपन्न हुई। पूजा में 150 किलो घी से शिविलिंग का लेप किया गया। इसके पश्चात भगवान शिव को वन माला फूल, औषधीय घास से बनी माला अर्पित की गई। साथ ही 52 प्रकार के व्यंजन और 56 भोग लगाए गए। इस पूरी प्रक्रिया के बाद लगभग 11 बजे महंत ने द्गिंबर अवस्था में मंदिर में चारों ओर जमीन में लोटते हुए शिव की पूजा संपन्न की। इस मौके पर आचार्य दुर्गा प्रसाद बमराडा, प्रकाश चंद्र खंकरियाल, प्रेमचंद मैठाणी, स्कन्द पुरी, जगदीश नैथानी, प्रदीप फोंदणी, विमल कप्रवाण, कमल उनियाल, अंश सहित आदि ने अनुष्ठान में अपना सहयोग प्रदान किया।

भंडारे में बड़ी संख्या में उमड़े श्रद्घालुरू  श्रीनगर(आरएनएस)।  कमलेश्वर महादेव मंदिर में घृत कमल अनुष्ठान के बाद भंडारे का आयोजन किया गया। धर्मेंद्र निर्माण कंपनी देहरादून, मंयक बिष्ट, दीपक पालीवाल, बीरेंद्र रावत, वीर सिंह पंवार व भाजपा जिला उपाध्यक्ष जितेंद्र रावत के सहयोग से लगे भंडारे में बड़ी संख्या में श्रद्घालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। जितेंद्र रावत ने बताया कि करीब 500 से अधिक श्रद्घालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

यह है मान्यतारू  ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या कर शिव पुत्र से अपने वध का वरदान मांगा था। वरदान मांगने का कारण यह था कि भगवान शिव की पहली पत्नी सती द्वारा यज्ञकुंड में अपनी प्राणों की आहूति देने के बाद वह दुखी होकर ध्यान में लीन हो गए थे। ताड़कासुर का यह विश्वास था कि भगवान शिव का जब विवाह ही नहीं होगा, तो पुत्र कहां से होगा। यदि पुत्र नहीं होगा, तो उसका वध भी नहीं होगा। इसी अहंकार में वह अत्याचार करने लगा। दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए शिव का दूसरा विवाह जरूरी था, जिसके लिये देवताओं ने कमलेश्वर में ही पूजा की थी। प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा को अब मंदिर के महंत निभाते आ रहे हैं।

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