शिक्षा, उद्योग और समाज मिलकर करें शोध
देहरादून। नैतिकता और आचार विचार से यदि काम किया जाए तो ऐसा काम पूरे समुदाय के लिए लाभकारी होता है। अब समय आ गया है कि शैक्षणिक संस्थानों, इंडस्ट्री और समाज को मिलकर काम करना चाहिए ताकि शोधों की गुणवत्ता बढ़ सके। ये बात दून विवि में चल रही महिला वैज्ञानिक सशक्तीकरण कार्यशाला में शुक्रवार को सीनियर साइंटिस्ट ड प्रथमा मानिकर ने कही।
उन्होंनें रिसर्च से संबंधित नैतिक मूल्यों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि उनकी टीम के बनाये गये केमिकल को कोविड-19 वैक्सीन में इस्तेमाल किया गया है। जेसी बोस नेशनल फैलोड मधु दीक्षित ने रिसर्च प्रपोजल को किस तरीके से तैयार किया जाए के संदर्भ में विस्तार से बताया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला की बेहतर प्रपोजल कैसे लिखा जा सकता है और किन कमियों के कारण से रिसर्च प्रपोजल रिजेक्ट हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि अपने प्रपोजल में रिसर्च गैप के बारे में जरूर लिखें। अमेरिका से आए ड उमेश बनाकर ने इंटेलेक्चुअल प्रपर्टी राइट्स के ऊपर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि आईपीआर में आज भी भारत चाइना से बहुत पीटे हैं जो की सोचनीय विषय है।
चीफ साइंटिस्ट डक्टर संजय बत्रा ने अपने व्याख्यान में हाई इंपैक्ट जनरल में अपने शोध पत्रों को प्रकाशित कराने के लिए विस्तार से बताया और कहा कि शोध पत्र के रेफेरेंस सही होने चाहिए। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कार्यशाला के समापन समारोह में कहा कि महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी बढ़ाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है। ताकि महिलाएं शैक्षणिक संस्थानों में और अधिक सशक्त होकर गुणवत्ता परक शोध में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें। इस कार्यक्रम के दौरान कुलसचिव एमएस मंदरवाल, प्रोफेसर एचसी पुरोहित, प्रोफेसर आरपी मंमगई, प्रोफेसर रचना नौटियाल, प्रोफेसर कुसुम, प्रो चेतना पोखरियाल, प्रो हर्ष पति डोभाल, डक्टर सविता तिवारी कर्नाटक, ड अरुण कुमार, ड नरेंद्र रावल, ड प्रीति मिश्रा, ड चारु द्विवेदी, ड हिमानी शर्मा, ड रचना गुसाई, ड आशाराम गैरोला, ड विकास, ड कोमल, ड सरिता, ड राजेश भट्ट, ड अनुज आदि उपस्थित रहे।