चीन पर बढ़त के लिए सशक्तिकरण जरूरी, वायु सेना प्रमुख ने ड्रैगन की युद्घ क्षमता में बढ़ोतरी पर जताई चिंता
नई दिल्ली, पीटीआईरू एयर चीफ मार्शल वी़आऱ चौधरी ने चीन द्वारा अपनी हवाई युद्घ क्षमता में लगातार वृद्घि किए जाने को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच बृहस्पतिवार को कहा कि भारतीय वायुसेना की ‘महत्वपूर्ण अभावों’ जैसे लड़ाकू स्क्वाड्रन और फोर्स मल्टीप्लायर्स की कमी को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए ताकि बल अपनी युद्घक क्षमता की बढ़त को बनाए रखे। एक संगोष्ठी के दौरान भारतीय वायुसेना के प्रमुख ने कहा कि भारत के पड़ोसी देश अशांतध्आक्रामक और अनिश्चित बने हुए हैं और ऐसे में देश (भारत) को साझा विचार और मूल्यों वाले देशों के साथ साझेदारी करके अपनी समेकित शक्ति बढ़ानी चाहिए।
एयर चीफ मार्शल चौधरी की यह टिप्पणी भारत-चीन के बीच ताजा तनाव की पृष्ठभूमि में आयी है। गौरतलब है कि चीन की सेना पीएलए (पब्लिक लिबरेशन आर्मी) ने अरुणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर यांग्त्से में यथास्थिति को बदलने का प्रयास किया, जिसके कारण नौ दिसंबर को सुदूर पूर्वोत्तर राज्य के तवांग सेक्टर में भारत-चीन के सैनिकों के बीच झड़प हो गयी थी। ऐसी खबरें हैं कि चीन बड़े पैमाने पर अपनी वायुसेना का आधुनिकीकरण कर रहा है और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आसपास बने महत्वपूर्णध्बड़े एयरबेस पर वायुसेना की स्थिति को मजबूत बना रहा है।
‘उभरती विश्व व्यवस्था में भारत की श्रेष्ठता’ (इंडियाज एमिनेंस इन द इमरजिंग वर्ल्ड अर्डर) विषय पर ‘19वें सुब्रत मुखर्जी सेमीनार’ में एयर चीफ मार्शल चौधरी ने कहा, ‘‘कई महत्वपूर्ण अभाव हैं जैसे लड़ाकू स्क्वाड्रन और फोर्स मल्टीप्लायर्स की कमी, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर भरा जाना चाहिए ताकि हम अपनी युद्घक क्षमता की श्रेष्ठता बनाए रख सकें।’’ वायुसेना प्रमुख ने यह भी कहा कि पर्याप्त और विश्वसनीय ‘हार्ड पावर’ के बगैर कोई ‘सफ्ट पावर’ नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत तभी फूलेगा-फलेगा जब हमारी सीमाएं, हवाई क्षेत्र और तटवर्ती इलाके सुरक्षित होंगे।’’ हिन्द-प्रशांत क्षेत्र सहित क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृष्य में लगातार हो रहे बदलावों के संबंध में एयर चीफ मार्शल चौधरी का कहना है, ‘‘बड़े पैमाने पर संघर्ष होने की स्थिति में वायुसेना से उसमें हिस्सा लेने और योगदान देने की अपेक्षा की जाएगी।
वायुसेना के पास क्षमता है कि युद्घ के दौरान वह हमलों से बचाव कर सकती है, सुरक्षा कर सकती है और आवश्यकता होने पर दंडित भी (हमला भी) कर सकती है।’’ भारतीय वायुसेना में लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या इसलिए कम हो रही है क्योंकि हाल के वर्षों में कई स्क्वाड्रन सेवानिवृत्त हो गए हैं और आने वाले वर्षों में जैगुआर सहित कई अन्य फ्लीट सेवानिवृत्त होने वाले हैं। वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास करीब 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं जबकि स्वीत क्षमता 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन है। प्रत्येक स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू विमान होते हैं। वायुसेना प्रमुख चौधरी ने अक्टूबर में यह माना था कि हाल-फिलहाल में वायुसेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या बढ़कर 42 होने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय वायुसेना को हवाई शक्ति के रूप में विकसित होने की जरूरत है और ऐसा करने के लिए भविष्य के युद्घों में लड़ने तथा उन्हें जीतने की क्षमता विकसित करने की जरूरत है।’’
वायुसेना प्रमुख ने कहा कि मल्टी डोमेन अपरेशंस (सेना के विभिन्न अंगों का एकसाथ युद्घ में शामिल होना) और हाईब्रिड युद्घ की स्थिति बनी रहेगी और ‘‘इसलिए हमें समकालीन बने रहने के लिए तकनीकोंध्प्रौद्योगिकी के साथ-साथ आगे बढ़ने, उसका सर्वोत्तम उपयोग करने की जरूरत है।’’ वायुसेना प्रमुख ने अपनी टिप्पणी में भारत के पड़ोसियों के ‘‘आक्रामकध्अशांत और अनिश्चित’’ बने रहने पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘‘आक्रमकताध्अशांति के बीच हमें साझा विचार और मूल्य रखने वाले देशों के साथ साझेदारी करके अपनी समेकित शक्ति को बढ़ाना चाहिए। हमें स्थिर और शांत देश होने की अपनी छवि का अर्थव्यवस्था के साथ जोड़कर उपयोग करना चाहिए और परस्पर रूप से लाभकारी तथा रणनीतिक साझेदारी विकसित करनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह आवश्यक है कि हम अपनी रणनीतिक स्वायतता बनाए रखें और मेरे विचार में ऐसा करने के लिए जन मियरशिमियर की संतुलन की रणनीति सबसे उपयुक्त होगी।’’ प्रत्यक्ष रूप से चीन का नाम लिए बगैर वायुसेना प्रमुख ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने के देश के प्रयासों का जिक्र किया और कहा कि एक प्रतिष्ठित क्षेत्रीय शक्ति एक प्रतिष्ठित महाशक्ति को चुनौती दे रही है। इसे इस क्षेत्र में चीन और अमेरिका की होड़ के परोक्ष संदर्भ के तौर पर देखा जाता है।