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45 मिनट तक आतंकियों के साथ मुठभेड़ आज भी यादों में ताजा

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– संसद के मुख्य भवन में प्रवेश कर वहां मौजूद सांसदों को बनाना चाहते थे निशाना
– सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर आतंकियों की योजना को किया विफल
नई दिल्ली, एजेंसी : दो दशक पहले भारत की संसद पर हुए हमले ने पूरे देश ही नहीं बल्कि दुनिया को झकझोड़ कर रख दिया था। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा किए गए इस हमले ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस बात पर सोचने के लिए मजबूर किया कि आखिर इनके लिए कौन सी पुख्ता रणनीति अपनाई जाए। दो दशक बाद भी पाकिस्तान में इस हमले का खाका खींचने वाले आतंकियों के मुखिया आजाद घूम रहे हैं।
13 दिसंबर 2001 को जब सभी लोग अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में मशगूल थे, तभी एक खबर आई, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। ये खबर संसद पर हुए हमले से जुड़ी थी। इसके बाद सभी की नजरें टीवी सेट पर आने वाली पलपल की खबर पर ही जमी रही थीं। पहली बार देश की संसद पर आतंकियों ने हमला किया था। इनसे निपटने के लिए संसद के सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी थी।
45 मिनट तक आतंकियों के साथ सुरक्षाकर्मियों की मुठभेड़ जारी रही और अंत में सभी आतंकियों को मार गिराया गया था। हमले के लिए संसद को यूं ही नहीं चुना गया था, बल्कि इसके पीछे आतंकी ये जताना चाहते थे कि वो कहीं भी कुछ भी करने की गलती कर सकते हैं। उन्हें ये नहीं पता था कि इस हमले में उनका क्या हाल होगा।
संसद पर हमला करने आए इन आतंकियों का मकसद संसद के मुख्य भवन में प्रवेश कर वहां मौजूद सांसदों को निशाना बनाना था, लेकिन इसमें वो कामयाब नहीं हो सके थे। सभी आतंकियों को सुरक्षाबलों ने संसद के बाहर ही ढेर कर दिया था। जिस दिन इस हमले को अंजाम दिया गया उस वक्त वक्त संसद सत्र चल रहा था और अधिकतर सांसद सदन में मौजूद थे। उस दिन संसद में ताबूत घोटाले को लेकर हंगामा चल रहा था। इसकी वजह से कुछ देर के लिए संसद के दोनों ही सदनों को स्थगित करना पड़ा था। पीएम अटल बिहारी बाजपेयी और लोकसभा में विपक्ष की नेता सोनिया गांधी भी हमले से पहले अपने आवास के लिए निकल चुके थे। हालांकि तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी संसद भवन में ही थे।
कुछ देर बाद ही जैश के आतंकी सफेद एंबेसडर कार से तेजी से संसद भवन की तरफ आए। इस कार पर गृह मंत्रालय का स्टीकर भी लगा था। ये गाड़ी संसद के मैन एंट्रेंस पर लगे बेरीकेट को तोड़ती हुई करीब 11 बजकर 29 मिनट पर संसद के प्रांगण में पहुंची। कार में से निकलते ही सभी पांच आतंकियों ने एके-47 से गोलियों की बौछार शुरू कर दी। संसद में मौजूद सांसदों और दूसरे कर्मियों को उस वक्त ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई पटाखे छोड़ रहा था। लेकिन जल्द ही सभी को असलियत का अंदाजा हो गया था। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभाला और सदन में एंट्री का गेट बंद कर दिया। आमने सामने की मुठभेड़ में सभी आतंकियों को मार गिराया गया।
इस हमले के साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया उसने पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग भी ली थी। 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट और 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उसको फांसी की सजा सुनाई। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा उसकी दया याचिका खारिज किए जाने के बाद 9 फरवरी 2013 की सुबह अफजल गुरू को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।

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