असंख्य धार्मिक ग्रन्थों में गीता एक रत्नरू प्रो़ मिश्र
हरिद्वार। उत्तराखण्ड संस्त अकादमी में श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म का महव एवं श्रीमद्भगवद् गीता में त्याग का रहस्य इन दो विषयों पर जनपदस्तरीय अनलाइन संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय संस्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली के निदेशक प्रो़ श्रीधर मिश्र ने कहा कि हमारे सनातन धर्म में असंख्य धार्मिक ग्रन्थ हैं, किन्तु उनमें गीता एक रत्न है। सम्पूर्ण धार्मिक वाङ्मय का सार इस ग्रन्थरत्न में समाहित है। अत: इसमें निहित शिक्षा को अपने जीवन में अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपना कल्याण कर सकता है। श्रीभगवानदास आदर्श संस्त महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य ड़भोला झा ने कहा कि सम्पूर्ण गीता में कर्म को प्रधान बताया गया है। अत: मानव को निरन्तर सत्कर्म करते ही रहना चाहिए। इसी से वह अपने जीवन में सुख प्राप्त कर सकता है। मुख्य वक्ता श्रीलालबहादुर केन्द्रीय संस्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली में व्याकरण विभागाध्यक्ष प्रो़ राम सलाही द्विवेदी ने कहा कि कर्म भी दो प्रकार के होते हैं। सकाम और निष्काम। इनमें भी यदि मानव निष्काम कर्म को महव देता है, तो उसका पारलौकिक जीवन सफल होता है। निष्काम कर्म करने से व्यक्ति का अन्त:करण अत्यन्त पवित्र हो जाता है। सहवक्ता साधना सदन आश्रम हरिद्वार के आचार्य श्रीप्रज्ञानानन्द पुरी महाराज, उत्तराखण्ड संस्त विश्वविद्यालय प्रो़ शैलेश कुमार तिवारी ने विचार रखे। ड़ हरीश गुरुरानी ने अतिथि का स्वागत किया। अभिषेक परगांई ने अतिथि का धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन ड़दीपक कुमार कोठारी ने किया।