गोल्ज्यू मंदिर के प्रबंधन कमेटी में सिर्फ सरकारी अफसरों को शामिल करने का मामला हाईकोर्ट पहुंचा
नैनीताल। अल्मोड़ा जिले के प्रसिद्घ चितई गोल्ज्यू मंदिर के प्रबंधन कमेटी में सिर्फ सरकारी अफसरों को शामिल करने और पुजारी की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकालने की तैयारी का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। मंदिर के संस्थापक परिवार की ओर से हाईकोर्ट में विशेष अपील दायर कर प्रशासन की कार्रवाई को चुनौती दी है।कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए सचिव पर्यटन, जिलाधिकारी अल्मोड़ा, एसडीएम को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।अल्मोड़ा निवासी संध्या पंत ने याचिका दायर कर कहा कि उनके परिवार के केशवदत्त, भोलादत्त पंत द्वारा 1919 में गोल्ज्यू मंदिर की स्थापना की। मंदिर बनाने के लिए ठेकेदार को 650 रुपये भुगतान भी किया मगर जिला प्रशासन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश की आड़ लेकर मनमानी की जा रही है। कोर्ट ने गैर धार्मिक गतिविधियों के लिए कमेटी बनाने के आदेश दिए थे मगर कमेटी में डीएम, एसडीएम, जिला पर्यटन अधिकारी, तहसीलदार आदि ही शामिल हैं। मंदिर से जुड़ा कोई शामिल नहीं हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उनका परिवार स्थापना के बाद से ही मंदिर में उपासना कर रहा है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि क्यों न आप पर एक लाख का जुर्माना लगाया जाए
नैनीताल। हाईकोर्ट ने व्यक्तिगत हित के लिये दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सख्त रुख अपनाकर याचिका कर्ता से पूछा है कि उनके इस त्य के लिए क्यों न उन पर एक लाख का जुर्माना लगाया जाए ? याचिकाकर्ता को इस सम्बन्ध में 19 अगस्त तक जबाव देने को कहा है । मामले की अगली सुनवाई भी 19 अगस्त की तिथि नियत की है ।मामले के अनुसार देहरादून निवासी दलवीर सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि मेसोनिक लज, कैम्पटी फल रोड मंसूरी में कार पार्किंग का कार्य 2011 से पूरा नहीं हुआ है । लेकिन याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट के संज्ञान में आया कि उक्त पार्किंग का वर्क अर्डर 22 फरवरी 2020 को हुआ है और यह याचिका ठेकेदार के पक्ष में दाखिल हुई है । जनहित को लेकर नहीं बल्कि व्यक्तिगत हित को लेकर दायर हुई है । जिस पर कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति एन एस धानिक की खण्डपीठ ने इस याचिका को व्यक्तिगत हित का मानते हुए याचिकाकर्ता से स्थिति स्पष्ट करने को कहा है । कोर्ट ने व्यक्तिगत हित की याचिका को जनहित के रूप में दायर करने पर याची से पूछा है कि याचिका को क्यों न एक लाख के जुर्माने के साथ खारिज किया जाए। कोर्ट ने कहा है कि जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग को रोकने की जिम्मेदारी भी कोर्ट की है