क्या इंडिया नाम रखकर विपक्ष ने तोड़ा कानून, सर्वोच्च न्यायालय में यहां फंस सकता है मामला
नईदिल्ली, एजेंसी। विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन को इंडिया (क.ठ.ऊ.क.अ.) नाम देकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। इस नाम को भारत के आधिकारिक नाम का दुरुपयोग बताते हुए दिल्ली के बाराखंबा थाने में 26 विपक्षी दलों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। लेकिन कानूनविदों की राय है कि चूंकि इंडिया शब्द को किसी संस्था या राजनीतिक दल के आधिकारिक नाम के तौर पर उपयोग नहीं किया गया है, इससे कोई आर्थिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की गई है, और इसका कहीं रजिस्ट्रेशन भी नहीं कराया जाना है, सर्वोच्च न्यायालय या चुनाव आयोग में इसे गैर कानूनी नहीं ठहराया जा सकता।
हालांकि, यह किसी संस्था (यहां भारत देश) के नाम का उपयोग कर लोगों को भ्रम में डालने का मामला बन सकता है। भारतीय दंड संहिता के आधार पर यह गैरकानूनी और दंडात्मक है। इस मामले में इन राजनीतिक दलों पर कार्रवाई की जा सकती है। इन राजनीतिक दलों के द्वारा इंडिया की ओर से सोशल मीडिया में किए गए पोस्ट साक्ष्य के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील माजिद मेमन ने अमर उजाला से कहा कि विपक्षी दलों के द्वारा इंडिया शब्द का उपयोग किसी भी तरह गैरकानूनी नहीं है। इस नाम का न तो कहीं रजिस्ट्रेशन कराया गया है, और न ही इससे कोई आर्थिक लाभ लेने की कोशिश की गई है, ऐसे में इसे अपराध नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि लोग अपना या अपनी संस्था का नाम भारत या हिंदुस्तानी रख लेते हैं। लेकिन यह अपराध नहीं है।
वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के वकील संजीव उनियाल ने कहा कि एंब्लेम एक्ट में यह साफ कहा गया है कि राज्य के नाम या प्रतीकों का किसी व्यक्ति या निजी संस्था के द्वारा उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसे में विपक्षी दलों का इंडिया का नाम उपयोग करना गलत है। सर्वोच्च न्यायालय भी इस मामले को सही नहीं कह सकता।
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार दुबे ने अमर उजाला से कहा कि भारतीय दंड संहिता में किसी व्यक्ति या संस्था के द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था का नाम का छद्म रूप से उपयोग करना दंडनीय अपराध है। इससे लोगों को भ्रम हो सकता है और वे किसी बहकावे में आ सकते हैं। ऐसे में इसे अपराध माना गया है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह किसी भी व्यक्ति के द्वारा अपना या अपनी संस्था का नाम सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग या नीति आयोग रखने की छूट नहीं मिल सकती क्योंकि इससे लोगों को भ्रम हो सकता है, और इसका दुरुपयोग हो सकता है, उसी प्रकार इंडिया या भारत रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
हालांकि, इस संदर्भ में इंडिया की हर स्पेलिंग के बाद पूर्ण विराम का उपयोग किया गया है, इसे पूरी तरह इंडिया के नाम का दुरुपयोग नहीं कहा जा सकता। इसका एक संस्था या राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत न कराना भी इसके बचाव का एक कारण हो सकता है। लेकिन इस मामले में छद्म नाम का उपयोग कर लोगों को भ्रमित करने का मामला बन सकता है और इस कारण विपक्षी दलों की परेशानी बढ़ सकती है।
वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता ने अमर उजाला से कहा कि विपक्षी दलों के महागठबंधन ‘इंडिया’ के विरुद्ध पुलिस में शिकायत और कानूनी कार्रवाई का विशेष औचित्य नहीं है। इंडिया नाम से बने इस गठबंधन का चुनाव आयोग में राजनीतिक दल के तौर पर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, इसलिए आयोग भी इस बारे में कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकता।
इंडिया नाम से किसी संगठन को कानूनी तौर पर रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उसका व्यावसायिक लाभ लेने के बाद, या अन्य तरीके से देश की प्रतिष्ठा के खिलाफ दुरुपयोग होने की परिस्थितियों में ही स्टेट एंब्लेम ऑफ इंडिया अधिनियम- 2005 और इसके तहत बनाए गए नियमों के अनुसार कार्रवाई हो सकती है।
उन्होंने कहा कि जीवित व्यक्तियों के अलावा कंपनी, ट्रस्ट और सोसाइटी आदि इस कानून के दायरे में आते हैं और वे इंडिया और भारत जैसे शब्दों का दुरुपयोग नहीं कर सकते। इसके बावजूद अनेक अखबार, टीवी चैनल और कंपनियां इंडिया नाम का इस्तेमाल कर रही हैं। भारत में राजनीतिक दलों के सभी गठबंधन, वो चाहे एनडीए हों या यूपीए, इंडिया जैसे शब्दों का उपयोग करते रहे हैं।
इनका सियासी महत्व भले ही हो, लेकिन कानून की दृष्टि में इसका विशेष महत्त्व नहीं है। इस गठबंधन के पदाधिकारी नहीं हैं, और कोई बैंक खाता भी नहीं खोला गया है। इंडिया शब्द लघु नाम के तौर पर उपयोग किया गया है, जबकि गठबंधन का पूरा नाम अलग है। इसलिए दलों के समूह द्वारा इंडिया नाम के दुरुपयोग के मामले में वर्तमान कानून के तहत कोई आपराधिक मामला नहीं बनना चाहिए।
अंग्रेजों के समय से ही देश के नाम के अनुचित उपयोग को लेकर कानूनी प्रावधान थे। जब देश स्वतंत्र हुआ, तब भी इसके नाम के अनुचित उपयोग को लेकर हमारे संविधान निर्माता बेहद सजग थे। देश और उसके कुछ मान्य प्रतीकों के अनुचित उपयोग को रोकने के लिए ही एंब्लेम एक्ट 1950 बनाया गया था। बाद में समय-समय पर इसे संशोधित किया गया।
नवीनतम कानूनी प्रावधान को ‘स्टेट एंब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इंप्रॉपर यूज) एक्ट 2005’ या संक्षिप्त में एंब्लेम एक्ट कहा जाता है। इसके अंतर्गत कोई व्यक्ति या संस्था उन शब्दों, प्रतीकों या चिन्हों का उपयोग नहीं कर सकती, जिसे भारत सरकार के संदर्भ में उपयोग किया जाता है। जैसे चार शेरों की छवि जिसे स्टांप में प्रयोग किया जाता है, उसका निजी संस्था या व्यक्ति अपने अर्थों में उपयोग नहीं किया जा सकता। यह दंडनीय अपराध है।