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‘कुछ बातें न कहना ही बेहतर’; जज नियुक्ति मामला सुनवाई सूची में नहीं आने पर अदालत ने कही यह बात

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नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कुछ मामलों में मौन रहना बेहतर होता है। अदालत ने जजों की नियुक्ति से जुड़े मामले पर सुनवाई न होने पर उठाए गए सवालों के बाद यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत में जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, ‘कुछ बातें न कहना ही बेहतर’ होता है। जस्टिस कौल ने यह टिपप्णी ऐसे समय में की जब सुप्रीम कोर्ट में मौजूद वकीलों ने जजों की नियुक्ति पर याचिकाओं को सूचीबद्ध न करने का आरोप लगाया। कुछ वकीलों ने कॉलेजियम की सिफारिशों पर कार्रवाई में केंद्र की तरफ से कथित देरी से संबंधित याचिकाओं को लेकर सवाल खड़े गिए। वकीलों ने मामले को वाद सूची (उं४२ी छ्र२३) से अचानक हटाने का आरोप लगाया। बता दें कि यह मामला उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण से भी जुड़ा है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने बीते 20 नवंबर को मामले की सुनवाई की पांच दिसंबर को तय की थी। इसे मंगलवार को सुनवाई के लिए सूची में शामिल भी किया गया था। याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील ने पीठ के समक्ष मुद्दे का उल्लेख किया और कहा कि याचिकाएं पांच दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होनी थीं, लेकिन इन्हें वाद सूची से हटा दिया गया है। इस पर न्यायमूर्ति कौल ने वकील से कहा, “मैंने इसे हटाया नहीं है।”
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने भी इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, “यह अजीब है कि मामले को सुनवाई के लिए तय मामलों की सूची हटा दिया गया है।” इस पर जस्टिस कौल ने भूषण से कहा, “आपके मित्र ने सुबह (मुद्दे का) जिक्र किया था। मैंने सिर्फ एक बात कही थी, मैंने उस मामले को हटाया नहीं है।”
इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि कोर्ट को रजिस्ट्री से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगना चाहिए। भूषण की अपील पर न्यायमूर्ति कौल ने उनसे कहा, “मुझे यकीन है कि मुख्य न्यायाधीश को इस मामले की जानकारी है।” न्यायमूर्ति कौल की टिप्पणी के जवाब में भूषण ने कहा कि यह बहुत असामान्य है कि मामले को सूची से हटा दिया गया, जबकि इसे आज सूचीबद्ध करने का न्यायिक आदेश था।
न्यायमूर्ति कौल ने भूषण से कहा, ”कुछ चीजें कभी-कभी अनकही रह जाती हैं। इसलिए मैं स्पष्ट करता हूं कि उन्होंने मामले को सूची से नहीं हटाया है, या वह इस मामले पर सुनवाई करने की इच्छी नहीं रखते।” बता दें कि 20 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की तरफ से बरती जा रही ढिलाई को रेखांकित किया था। अदालत ने कहा था कि कॉलेजियम की तरफ से स्थानांतरण के लिए भेजे गए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नाम में ‘पिक एंड चूज’ का रवैया समस्या खड़ी करता है। शीर्ष अदालत ने साफ किया था कि यह एक अच्छा संकेत नहीं भेजता है।

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