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हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, संविदा महिला कर्मियों को साल में 31 दिनों का शिशु देखभाल अवकाश

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नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में संविदा पर सेवारत महिला कर्मचारियों को रक्षा बंधन से पहले बड़ी सौगात दी है। कोर्ट ने महिला संविदा कर्मचारियों को एक साल में 31 दिनों का बाल्य देखभाल अवकाश देने का आदेश जारी कर अहम फैसला दिया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की संयुक्त खंडपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट के आदेश से राज्य की हजारों महिला संविदा कार्मिक लाभान्वित होंगी। कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार द्वारा नियमित महिला कर्मियों के लिए 30 मई 2011 को जारी शासनादेश के दायरे में महिला संविदा कर्मी बाल्य देखभाल अवकाश की पात्र बन गई हैं।
दरअसल गढ़वाल में तैनात आयुर्वेदिक चिकित्सक ड तनुजा तोलिया ने 2018 में बेटा पैदा होने के बाद बाल्य देखभाल अवकाश नहीं मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में हाईकोर्ट के ही एक आदेश का हवाला देते हुए अवकाश के लिए आदेश पारित करने का आग्रह किया गया था। सरकार द्वारा 2011 में जारी शासनादेश के अनुसार रेगुलर महिला कार्मिक को दो बच्चों के 18 साल होने तक दो साल या 730 दिन का बाल्य देखभाल अवकाश देय है। सरकार की ओर से संविदा महिला कर्मचारी को बाल्य देखभाल अवकाश देने का विरोध करते हुए कहा कि इनकी नियुक्ति एक साल के लिए होती है। इनके नियुक्ति पत्र में साफ लिखा है कि साल में 14 दिन का अवकाश देय होगा। ये जिस दिन कार्यालय नहीं आएंगी, उस दिन का भुगतान नहीं दिया जाएगा।
नियुक्ति संविदा के रूप में हुई है, जिसे राजकीय सेवा नहीं माना जा सकता। संविदा कार्मिक को यह अवकाश देने से संविधान के किसी अनुच्टेद का उल्लंघन नहीं होता। हाईकोर्ट सरकार को नीतिगत मामले में नियम बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती। कानून बनाना राज्य का अधिकार है। इस तरह के कदमों से राज्य पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ेगा। मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले को तीन जजों की खंडपीठ को भेज दिया था। कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या संविदा महिला कार्मिक को 730 दिन का बाल्य देखभाल अवकाश दिया जा सकता है ? क्या इस मामले में सरकार ने कोई कानून बनाया है, या कोर्ट सरकार को निर्देश दे सकती है ?
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले में सुनवाई पूरी कर 14 जुलाई को फैसला सुरक्षित कर चुकी थी। शुक्रवार को तीन जजों की खंडपीठ ने अहम फैसला देते हुए साफ कर दिया कि महिला संविदा कर्मचारी भी 30 मई 2011 के शासनादेश के आधार पर बाल्य अवकाश के लिये पात्र होंगी। अलबत्ता कोर्ट ने साफ किया है कि महिला संविदा कर्मियों को 2 साल के बजाय एक साल 31 दिन का ही बाल्य देखभाल अवकाश दिया जायेगा।

धार्मिक स्थलों पर पांच डेसीबल से ज्यादा ध्वनि परहाईकोर्ट के दो जजों की अलग अलग राय
नैनीताल। धार्मिक स्थलों पर पांच डेसीबल से ज्यादा ध्वनि पर हाई कोर्ट के दो जजों की अलग अलग राय है। चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन की पीठ ने ये माना है कि ध्वनि प्रदूषण के रुल्स के अनुरूप डाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो सकता है, जबकि जस्टिस लोकपाल सिंह ने पूर्व में दिये आदेश पर ही अपनी सहमति दी है। दरअसल उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने 19 जून 2018 को आदेश पारित कर राज्य में लाउड़स्पीकर की आवाज को 5 डेसीबल कर दिया था।इस आदेश के खिलाफ उत्तराखण्ड वक्फ बोर्ड़ के सदस्य मुनब्बर अली ने संशोधन याचिका दाखिल की थी।

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