नई दिल्ली, एजेंसी। किस्त की राशि जमा न होने से रद (कालातीत) हुई बीमा पालिसी से धनराशि प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला दावा अस्वीकार किया जा सकता है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है। साथ ही इस बात का स्पष्ट उल्लेख बीमा पालिसी के दस्तावेज में करने का निर्देश दिया है। इसी के साथ शीर्ष न्यायालय ने सड़क दुर्घटना के एक मामले में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रीड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) के आदेश को रद कर दिया।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि बीमा कानूनी आधार पर किया गया समझौता होता है। इसमें दोनों पक्षों को अच्छी भावना से शर्ते पूरी करनी होती हैं। बीमा पालिसी के दस्तावेज में स्पष्ट रूप से शर्ते लिखी होनी चाहिए और उन्हें उसी रूप में समझा जाना चाहिए। एनसीडीआरसी के फैसले के खिलाफ जीवन बीमा निगम (एलआइसी) सुप्रीम कोर्ट आया था। मामले में महिला के पति ने एलआइसी की जीवन सुरक्षा योजना के तहत 3़75 लाख रुपये का अपना बीमा कराया था। बीमे के एवज में एलआइसी को छमाही किस्त का भुगतान किया जाता था। लेकिन किन्हीं कारणों से किस्त जमा नहीं हो पाई। इस बीच छह मार्च, 2012 को आदमी (पति) सड़क दुर्घटना में घायल हुआ और 21 मार्च को उसकी मौत हो गई।