देश-विदेश

क्या आदित्य-एल1 सूर्य का अध्ययन करने का एक पूर्ण मिशन है? करफड ने दिया यह जवाब

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

 

बेंगलुरु , एजेंसी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि उसका पहला सौर खोज मिशन आदित्य-एल1 अंतरिक्ष में वैज्ञानिक पेलोड ले जाने वाले अंतरिक्ष यान के सीमित द्रव्यमान व ऊर्जा के कारण सूर्य का अध्ययन करने के लिए परिपूर्ण नहीं है। इसरो ने कहा, “क्या आदित्य-एल1 सूर्य का अध्ययन करने का एक पूर्ण मिशन है? इसका स्पष्ट उत्तर ‘नहीं’ है जो न केवल आदित्य-एल1 के लिए बल्कि सामान्य तौर पर अन्य किसी भी अंतरिक्ष मिशन के लिए परिपूर्ण मिशन नहीं है।” अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा, इसका कारण यह है कि अंतरिक्ष में वैज्ञानिक पेलोड ले जाने वाले अंतरिक्ष यान के सीमित द्रव्यमान, ऊर्जा और सीमित साधनों, सीमित क्षमता वाले उपकरणों के कारण केवल एक सीमित सेट ही अंतरिक्ष यान पर भेजा जा सकता है।
एजेंसी ने कहा आदित्य-एल1 के मामले में सभी पैमाने लैग्रेंज बिंदु एल1 से किए जाएंगे। उदाहरण के तौर पर सूर्य की विभिन्न घटनाएं बहु-दिशात्मक हैं और इसलिए रहस्यमयी विस्फोटक घटनाओं की ऊर्जा के बारे में पता लगाना अकेले आदित्य-एल1 के साथ अध्ययन करना संभव नहीं होगा। एल5 के रूप में जाना जाने वाला एक अन्य लैग्रेंज स्थल पृथ्वी निर्देशित सीएमई घटनाओं का अध्ययन करने और अंतरिक्ष मौसम का आकलन करने के लिए एक अच्छा सुविधाजनक स्थल है। इसके अलावा, ऐसे अध्ययनों के लिए अंतरिक्ष यान की कक्षाओं को मिलने वाली तकनीकी चुनौतियों के कारण सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया जा सकता है।
इसरो ने कहा ऐसा माना जाता है कि सूर्य ध्रुवीय गतिशीलता और चुंबकीय क्षेत्र सौर चक्र प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा सूर्य के अंदर और उसके आसपास होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं को समझने के लिए विभिन्न तरंग दैध्र्य पर सौर विकिरण के ध्रुवीकरण पैमाने की आवश्यकता होती है।
इसरो ने कहा कि आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है।
एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को सूर्य को बिना किसी आच्छादन/ग्रहण के लगातार देखने का प्रमुख लाभ है। यह वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ प्रदान करेगा। अंतरिक्ष यान वैद्युत-चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र संसूचकों का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात नीतभार ले जाएगा। विशेष सहूलियत बिंदु एल1 का उपयोग करते हुए, चार नीतभार सीधे सूर्य को देखते हैं और शेष तीन नीतभार लाग्रेंज बिंदु एल1 पर कणों और क्षेत्रों का यथावस्थित अध्ययन करते हैं, इस प्रकार अंतर-ग्रहीय माध्यम में सौर गतिकी के प्रसार प्रभाव का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन प्रदान करते हैं।
आदित्य एल1 नीतभार के सूट से कोरोनल तापन, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार आदि की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने की उम्मीद है। मिशन चंद्रयान की बड़ी सफलता के कुछ घंटों के बाद ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस सोमनाथ ने गत बुधवार को घोषणा की कि सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल-1 मिशन सितंबर के पहले सप्ताह में लॉन्च किया जाएगा। आदित्य-एल-1 सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला होगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!