जंगल से सटे गांवों में हाथी का आतंक
रौंद रहे फसलें, किसान की मेहनत पर फिर रहा पानी
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। जंगल क्षेत्रों से व उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे गांवों में हाथियों का झुण्ड किसानों के खेतों में फसलों को रोंदते जा रहें है और वन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि वन विभाग को सूचना देने के बाद भी समस्या का निस्तारण नहीं हो पा रहा है। ग्रामीणों ने रोष व्यक्त करते हुए वन विभाग से रात्रि के समय गश्त बढ़ाने के साथ ही कास्तकारों को हुए नुकसान के उचित मुआवजे की मांग की है।
भाबर क्षेत्र के अन्तर्गत ग्राम हल्दूखाता, मवाकोट, कण्वाश्रम, झण्डीचौड, गंदरियाखाल, रामदयालपुर व चिल्लरखाल आदि गांव जंगलो से सटे हुए हैं और कुछ ग्रामीणों के खेत बिजनौर वन प्रभाग के जंगल से सटे हुए हैं। अक्सर जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता है। जिससे उस क्षेत्र के ग्रामीणों को फसलों का काफी नुकसान उठाना पड़ता है। आजकल इन क्षेत्रों में जंगल से हाथियों का झुण्ड फसलों को रौंद रहा है। ग्रामीण काफी मशक्कत के बाद भी हाथियों से अपनी फसल को बचा नहीं पा रहे हैं। पिछले दिनों की देवरामपुर में हाथियों केझुण्ड ने उत्पात मचाया था। वहीं सनेह क्षेत्र के ग्रांस्टनगंज और रामपुर, कोटडीढांग में भी हाथी आये दिन उत्पात मचा रहे है। वन विभाग हाथियों को जगंल में रोक पाने में नाकाम हो रहा है। हाथी सुरक्षा दीवूार जगह-जगह क्षतिग्रस्त होने से हाथी आवासीय बस्तियों की ओर रूख कर रहे है। वार्ड नंबर 37 पश्चिमी झण्डीचौड़ के पार्षद सुखपाल शाह ने बताया कि पिछले कई सालों से हाथी सुरक्षा दीवार बनाने की मांग शासन-प्रशासन से कर रहे है, लेकिन अभी तक सुरक्षा दीवार का निर्माण नहीं हो पाया है। जिस कारण जगंली जानवर खेती को नुकसान पहुंचा रहे है। जंगली जानवरों के आतंक से परेशान काश्तकारों का खोती से मोह भंग हो रहा है। कई काश्तकार तो खेती को छोड़ भी चुके है। उन्होंने कहा कि शासन-प्रशासन व वन विभाग की लापरवाही का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। वन विभाग को जब इस बात की जानकारी दी जाती है तो वह खेत का मुआवजा देने के लिए कह देते है जबकि मुआवजा कब तक मिलता है पता नहीं। काश्तकारों का कहना है कि वन विभाग द्वारा जो मुआवजा दिया जाता है वह भी मजाक उड़ाने वाला होता है जबकि उनके खेत में साल भर खाने का अनाज होता है जिसे जंगली जानवरों द्वारा रौंद दिया जाता है। वन विभाग द्वारा 100 रू0 से लेकर 500 रू0 तक ही मुआवजा मिलता है जो कि न्याय नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मुआवजा न देकर सीमा से सटे इलाकों में वन विभाग द्वारा जंगली जानवरों को रोकने के उपाय करने चाहिए। ताकि फसल को बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि गश्ती दलों को गश्त करनी चाहिए और ग्रामीणों द्वारा सूचना देने पर त्वरित कार्यवाही की जानी चाहिए।