चंडीगढ़ पर मान सरकार के प्रस्ताव से बढ़ी सियासी गर्मी
चंडीगढ़। राजधानी चंडीगढ़ पर वर्चस्व की लड़ाई में हरियाणा और पंजाब फिर आमने-सामने हैं। पंजाब विधानसभा में केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने का प्रस्ताव पारित होने के बाद नए सिरे से सियासी घमासान छिड़ गया है।
पंजाब से हरियाणा के अलग होने के 56 साल बाद भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते न तो विवाद का हल निकाला जा सका है और न ही निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना दिख रही है। न केवल राजधानी बल्कि एसवाईएल नहर के निर्माण, चंडीगढ़ के प्रशासक पद पर हरियाणा के राज्यपाल की नियुक्ति और हरियाणा की अलग हाई कोर्ट समेत कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर अंतरराज्यीय विवाद लंबे समय से कायम हैं, मगर हाल-फिलहाल इनके सुलझने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
आजादी से पहले पंजाब की राजधानी लाहौर होती थी, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चली गई। ऐसे में मार्च 1948 में पंजाब के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी को नई राजधानी बनाने के लिए चिह्नित किया।
योजनाबद्घ तरीके से चंडीगढ़ को बसाकर सात अक्टूबर 1953 को प्रथम राष्ट्रपति डा़ राजेंद्र प्रसाद ने इसका औपचारिक उद्घाटन कर दिया। विवाद तब शुरू हुआ, जब 1966 में हरियाणा को पंजाब से अलग कर नया राज्य बनाने के बावजूद दोनों प्रदेशों की राजधानी चंडीगढ़ को ही बनाया गया।
हालांकि इसके पीटे भी तात्कालिक मजबूरियां थी। संसाधनों के हिसाब से दोनों राज्यों में चंडीगढ़ इकलौता शहर था जो किसी नए राज्य की राजधानी बन सकता था। यहां प्रशासनिक व्यवस्था का पूरा ढांचा मौजूद था। इसलिए चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की राजधानी के रूप में इस्तेमाल करने पर सहमति बनी। पंजाब को संसाधनों का 60 प्रतिशत हिस्सा मिला, जबकि हरियाणा को 40 प्रतिशत। साथ ही केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर यहां के लिए केंद्र का नियंत्रण भी बनाया गया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि कुछ समय के लिए ही चंडीगढ़ साझा राजधानी रहेगी और बाद में पंजाब को वापस दे दी जाएगी। हरियाणा को अलग राजधानी के रूप में नया शहर विकसित करने के लिए पांच साल का समय दिया गया। नई राजधानी के लिए केंद्र ने 10 करोड़ रुपये का अनुदान और इतनी ही राशि का लोन देने का प्रस्ताव दिया था।
वर्ष 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौते के अनुसार चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की प्रक्रिया शुरू हुई तो हरियाणा में सियासी घमासान छिड़ गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल ने इसका विरोध किया तो 26 जनवरी 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। एक कवायद यह भी चली कि चंडीगढ़ को दोनों राज्यों में आधा-आधा बांट दिया जाए, लेकिन बात नहीं बनी।
वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपनी पहली पारी में चंडीगढ़ के विकास के लिए एक विशेष बाडी बनाई तो पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे नाक का सवाल बना लिया। उन्होंने यह कहकर इसे खारिज कर दिया कि चंडीगढ़ अविवादित रूप से पंजाब का हिस्सा है। हरियाणा दिवस पर उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सुझाव दिया कि चंडीगढ़ को केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर छोड़कर हरियाणा और पंजाब अपनी अलग-अलग राजधानियां बनाएं और हाई कोर्ट की बेंच दोनों राज्यों में हों। हालांकि इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।