मोरी का गोविद वन्यजीव सेंचुरी क्षेत्र बना वन्य जीवों की तस्करी का अड्डा

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उत्तरकाशी। मोरी का गोविद वन्यजीव सेंचुरी क्षेत्र कई वर्षों से प्रतिबंधित जड़ी-बूटी, चरस, भालू, कस्तूरी मृग आदि वन्यजीवों के अंग की तस्करी की जा रही है, जबकि पार्क प्रबंधन सोया हुआ है।
हरकीदून घाटी के गंगाड़, ढाटमीटर, ओसला गांव में सरकार की ओर से जड़ी-बूटी उत्पादन के लाइसेंस दिए। इसी आड़ में पार्क के अधिकारी व कर्मचारियों की मिलीभगत से हर वर्ष सैकड़ों कुंतल जड़ी-बूटी की तस्करी हो रही है, जिसमें प्रतिबंधित सालमपंजा, नागछतरी जैसी बहुमूल्य जड़ी-बूटी की तस्करी की जा रही है। ऐसे में गोविद वन्यजीव सेंचुरी के अधिकारियों व वन कर्मियों की गश्त पर भी सवाल उठ रहे हैं। हालांकि गोविद वन्यजीव सेंचुरी के नैटवाड़ स्थित मुख्य गेट पर निकासी जांच के दौरान कुछ तस्कर पकड़ में आ जाते हैं।
इसी सप्ताह नैटवाड़ बैरियर पर जांच के दौरान 108 बोरे जड़ी-बूटी और कस्तूरी मृग की कस्तूरी पकड़ी गई थी। इसके अलावा सांकरी रेंज से आने वाले व्यक्तियों के पास चरस और अफीम भी कई बार पकड़ी जा चुकी है। नैटवाड़ बैरियर पर पकड़ी गई प्रतिबंधित जड़ी-बूटी व वन्यजीवों के अंग
जून 2019- अखरोट के पेड़ की खाल दो बोरे
अगस्त 2012 – एक गुलदार की खाल
अक्टूबर 2010 -332 बोरे प्रतिबंधित जड़ी-बूटी
दिसंबर 2020 – 108 बोरे प्रतिबंधित जड़ी-बूटी।
दिसंबर 2020 – कस्तूरी मृग की 55 ग्राम
उप निदेशक गोविद वन्यजीव सेंचुरी कोमल सिंह, का कहना है कि कस्तूरी सांकरी रेंज के ओसला, गंगाड व ढाटमीर के दर्जनों किसानों के पास जड़ी-बूटी खेती करने की अनुमति है। सभी लाइसेंसों की जांच की जा रही है, ताकि इस आड़ में प्रतिबंधित जड़ी-बूटी या वन्यजीव के अंगों की तस्करी न हो। तस्करों के साथ मिले हुए किसी भी कर्मचारी व अधिकारी को बख्शा नहीं जाएगा।

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