भारतीय अध्यात्म विज्ञान की वर्तमान में प्रासंगिकता पर राष्ट्रीय ई- संगोष्ठी का आयोजन
जयन्त प्रतिनिधि
कोटद्वार। आज रविवार को गणित विभाग राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार तथा देवभूमि विचार मंच द्वारा “भारतीय अध्यात्म विज्ञान की वर्तमान में प्रासंगिकता” विषय पर गूगल मीट एवं यूट्यूब के माध्यम से एक दिवसीय राष्ट्रीय ई- संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. दीक्षित ने प्रो.ए.डी.एन बाजपेई (कुलपति ,अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर ,छत्तीसगढ़) ने अपने व्याख्यान में बताया कि भारतवर्ष की समस्त पूंजी उसकी आध्यात्मिक संपदा है तथा आध्यात्मिकता को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि आत्मा की विशेषताओं को जीवन में लाने की अथवा आचरण में लाने की प्रक्रिया ही आध्यात्मिकता है,आध्यात्मिकता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति आत्मा की सत्ता पर ही नहीं वरन उसके आयामों पर भी विश्वास करे। इन्होंने विभिन्न उदाहरणों द्वारा विज्ञान तथा अध्यात्म को परस्पर जोड़ा तथा बताया कि विज्ञान को शुद्ध,अशुद्ध तथा विशुद्ध विज्ञान के रूप में तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है जिसमें शुद्ध विज्ञान का अर्थ पदार्थ से, अशुद्ध विज्ञान का अर्थ मन से तथा विशुद्ध विज्ञान का अर्थ अध्यात्म की कसौटी पर उतरना है। इन्होंने बताया कि जीवन में प्रदर्शन, नाटक तथा आडंबर व्यक्ति को आध्यात्मिकता से दूर लेकर जाते हैं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. निलिम्प त्रिपाठी (महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय भोपाल,मध्य प्रदेश) ने अपने व्याख्यान में बताया किस प्रकार से सत्य बोलने से आनंद की सहज अनुभूति होती है तथा कामनाओं की गांठ से विमुक्तता ही आध्यात्मिकता की ओर व्यक्ति को अग्रसर करती है। इन्होंने तीन प्रकार की एषणाऐं क्रमश: लोकेषणा(लोक में ख्याति की कामना), वित्तेषणा(धन की कामना) तथा पुत्रेष्णा(पुत्र की कामना अथवा पुत्र मोह) से मुक्त हो जाना ही आध्यात्मिकता का मंत्र बताया। उन्होंने बताया कि मन ,विचार तथा वर्तन की शुद्धता ही तपस्या है। मन,वचन एवं कर्म से हिंसा आध्यात्मिकता के मार्ग में बाधक हैं,अत: मनुष्य को त्याग का अनुसरण करना चाहिए व आत्म चिंतन तथा ज्ञान के अनुरूप आचरण ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
विशिष्ट वक्ता डॉ.ललित नारायण मिश्रा(सचिव हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण, उत्तराखंड) ने आधुनिक विज्ञान में हमारे ग्रंथों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि निर्विचार होना ही आध्यात्मिकता है तथा जीवन में तर्पण का विशेष महत्व है जो कि हमारे वर्तमान में परिलक्षित होता है। इनके अनुसार हमारे ग्रंथ पूर्ण रूप से समृद्ध हैं तथा इनमें विज्ञान समाया है, हम अपने ग्रंथों में वैज्ञानिक महत्व की बातों को समझ पाने में असफल रहे हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ. जानकी पवार (प्राचार्या,राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोटद्वार)
ने बताया कि किस प्रकार कोविड-19 ने संपूर्ण विश्व को सबक दिया है कि जीवन का अर्थ मात्र भौतिक आकांक्षा या कामनाएं नहीं है,यह आकांक्षाएं तथा कामनाएं जीवन के वास्तविक उद्देश्यों से परे हैं। इन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आधुनिक विज्ञान एवं भारतीय शास्त्रों में उक्त ज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
कार्यक्रम की संचालक डॉ तृप्ति दीक्षित ने समस्त विशिष्ट अतिथियों, वक्ताओं तथा आगंतुकों का हृदय से आभार व्यक्त किया तथा कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री भगवती प्रसाद राघव (क्षेत्रीय संयोजक प्रज्ञा प्रवाह) का विशेष आभार व्यक्त किया।