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प्रदेश में पहली बार देसी काले चने की खेती शुरू

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हल्द्वानी। प्रदेश में पहली बार देसी काले चने की खेती शुरू हो गई है। हल्द्वानी स्थित गौलापार प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए देसी काले चने की खेती शुरू की है। उच्च प्रोटीनयुक्त यह चना पेट के लिए भी लाभदायक है। बताते चलें कि प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने पिछले वर्ष एक एकड़ भूमि में काला चावल पैदा कर क्षेत्र के किसानों के लिए नया प्रयोग शुरू किया था। इस बार उन्होंने जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए देसी काले चना का उत्पादन कर किसानों को फिर से खेती में नए प्रयोगों के बारे में सोचने में मजबूर कर दिया है। मेहरा ने बताया कि पिछले दो साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने रासायनिक खादों का प्रयोग किए बगैर ही देसी काले चने का सफलता पूर्वक उत्पादन शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में आयोजित किसान मेले के दौरान उन्हें काले चने के बारे में पता लगा। बाजार में मिलने वाले लाल-पीले चने को लोग पेट में गैस की गड़बडी के चलते खाने से परहेज करते हैं। वहीं काला चना उच्च प्रोटीनयुक्त होता है। इससे पेट में गैस की समस्या भी पैदा नहीं होती। मेहरा ने बाताया की वह राजस्थान मेले में आई इंदौर की महिला किसान से थोड़ा बीज लेकर आए। इस बीच को उन्होंने अपने खेतों में बोया था। दो साल के प्रयास के बाद आज उनके खेतों में देसी काले चने की फसल लहलहाने लगी है।
मेहरा ने बताया कि काले चने कि किस्म वैसे तो मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात एवं छत्तीसगढ आदि राज्यों के लिए अनुकूलित है। क्योंकि इसकी जलवायु और वातावरण भी राज्यों के लिए उपयुक्त है, लेकिन उत्तराखंड में किया गया इसका पहला प्रयोग सफल साबित हुआ है। हल्द्वानी (गौलापार) के खेतों में इसकी अच्छी पैदावार हो रही है। अब दूसरे किसान भी सामान्य रूप से इसकी खेती कर अच्छी पैदावार के साथ-साथ अच्छा लाभ कमा सकते हैं। मेहरा ने बताया कि उत्तराखंड में देसी काले चने की खेती नहीं किए जाने के कारण इसका बीज यहां उपलब्ध नहीं हो पता, लेकिन अब किसान उनसे बीज लेकर इसका उत्पादन कर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि नवाचार के लिए उन्होंने इसकी पूरी जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. विजय कुमार दोहरे को दी। उन्होंने इस चलने को सामान्य चने के मुकाबले अधिक पोष्टिक बताया है।
इन फायदों का दावा:
– काला चना फोलेट्स, फायबर, उच्च मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, कापर, आयरन और फास्फोरस से भरपूर होता है।
– इसके सेवन से क्लोरोफिल, विटामिन ए, बी, सी, डी, और फास्फोरस, पोटेशियम, मैग्नीशियम की आवश्यकता पूरी होती है।
– काला चना एंटी आक्सीडेंट, एंथोसायनीन, फायटो न्यूट्रिएंटस और एएलए से भरपूर है।
– यह ऊर्जा बढ़ाने के साथ ही त्वचा, बाल, तनाव, हृदय स्ट्रोक, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज व कब्ज आदि में फायदेमंद है।
– उच्च मात्रा में प्रोटीन होने के कारण जीम जाने वाले लोग ज्यादातर इसका उपयोग करते है।
खेती की विधि: इसकी खेती के लिए प्रति एकड़ में 30 किलो बीज की आवश्यकता होती है।
– मिट्टी के हिसाब से 1 या 2 सिंचाई में ये पककर तैयार हो जाता है।
– इसका उत्पादन प्रति एकड़ में लगभग 8 से 10 क्विंटल होता है।

हम जो देसी चना इस्तेमाल करते हैं उसे ही काल चना कहते हैं। उसकी परत भूरे या लाल रंग की होती है। मगर, काली परत वाले चने की खेती उत्तराखंड में नहीं होती है। इसलिए कृषक नरेंद्र मेहरा ने जो दावा किया जा रहा है वह सही है। उनका प्रयोग सराहनीय है।- धनपत कुमार, मुख्य कृषि अधिकारी नैनीताल।
उत्तराखंड में देसी काले चने के खेती पहला प्रयोग सामने आया है। यह खेती में प्रयोग के लिहाज से अच्छी बात है। हम किसान नरेंद्र मेहरा से बात कर इसका रजिस्ट्रेशन कर टेस्टिंग करवाएंगे। – डॉ. विजय कुमार दोहरे, प्रभारी वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र ज्योलिकोट।

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