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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति मुर्मू का संबोधन; राम मंदिर, जी20 समिट का किया जिक्र

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नई दिल्ली, एजेंसी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को राष्ट्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा, ‘मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार! 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। जब मैं पीछे मुड़कर यह देखती हूं कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हमने कितनी लंबी यात्रा की है, तब मेरा हृदय गर्व से भर जाता है। हमारे गणतंत्र का 75वां वर्ष, कई अर्थों में, देश की यात्रा में एक ऐतिहासिक पड़ाव है।’
उन्होंने कहा कि यह उत्सव मनाने का विशेष अवसर है, जैसे हमने स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के दौरान अपने देश की अतुलनीय महानता और विविधतापूर्ण संस्कृति का उत्सव मनाया था। जब संसद ने ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित किया तो हमारा देश, स्त्री-पुरुष समानता के आदर्श की ओर आगे बढ़ा। मेरा मानना है कि ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’, महिला सशक्तीकरण का एक क्रांतिकारी माध्यम सिद्ध होगा। इससे हमारे शासन की प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने में भी बहुत सहायता मिलेगी। जब सामूहिक महत्व के मुद्दों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, तब हमारी प्रशासनिक प्राथमिकताओं का जनता की आवश्यकताओं के साथ बेहतर सामंजस्य बनेगा।
उन्होंने कहा कि हमारा देश स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ते हुए अमृतकाल के प्रारंभिक दौर से गुजर रहा है। यह एक युगांतकारी परिवर्तन का कालखंड है। हमें अपने देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का सुनहरा अवसर मिला है। हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिक का योगदान, महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए मैं सभी देशवासियों से संविधान में निहित हमारे मूल कर्तव्यों का पालन करने का अनुरोध करूंगी। ये कर्तव्य, आजादी के 100 वर्ष पूरे होने तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में, प्रत्येक नागरिक के आवश्यक दायित्व हैं। इस संदर्भ में मुझे महात्मा गांधी का स्मरण होता है। बापू ने ठीक ही कहा था, ‘जिसने केवल अधिकारों को चाहा है, ऐसी कोई भी प्रजा उन्नति नहीं कर सकी है। केवल वही प्रजा उन्नति कर सकी है जिसने कर्तव्य का धार्मिक रूप से पालन किया है।’
उन्होंने कहा कि एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश विदेशी शासन से मुक्त हो गया। लेकिन, उस समय भी देश में सुशासन तथा देशवासियों में निहित क्षमताओं और प्रतिभाओं को उन्मुक्त विस्तार देने के लिए, उपयुक्त मूलभूत सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को स्वरूप प्रदान करने का कार्य चल ही रहा था। संविधान सभा ने सुशासन के सभी पहलुओं पर लगभग तीन वर्ष तक विस्तृत चर्चा की और हमारे राष्ट्र के महान आधारभूत ग्रंथ, यानी भारत के संविधान की रचना की। आज के दिन हम सब देशवासी उन दूरदर्शी जन-नायकों और अधिकारियों का कृतज्ञता-पूर्वक स्मरण करते हैं जिन्होंने हमारे भव्य और प्रेरक संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया था।
उन्होंने कहा, ‘कल के दिन हम संविधान के प्रारंभ का उत्सव मनाएंगे। संविधान की प्रस्तावना ‘हम, भारत के लोग’, इन शब्दों से शुरू होती है। ये शब्द, हमारे संविधान के मूल भाव अर्थात् लोकतंत्र को रेखांकित करते हैं। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, लोकतंत्र की पश्चिमी अवधारणा से कहीं अधिक प्राचीन है। इसीलिए भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ कहा जाता है।
‘आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों को स्मरण करने का एक महत्वपूर्ण अवसर’
मुर्मू ने कहा, ‘मेरे प्यारे देशवासियो, गणतंत्र दिवस हमारे आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों को स्मरण करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। जब हम उनमें से किसी एक बुनियादी सिद्धान्त पर चिंतन करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से अन्य सभी सिद्धांतों पर भी हमारा ध्यान जाता है। संस्कृति, मान्यताओं और परम्पराओं की विविधता, हमारे लोकतंत्र का अंतर्निहित आयाम है। हमारी विविधता का यह उत्सव, समता पर आधारित है, जिसे न्याय द्वारा संरक्षित किया जाता है। यह सब स्वतंत्रता के वातावरण में ही संभव हो पाता है। इन मूल्यों और सिद्धांतों की समग्रता ही हमारी भारतीयता का आधार है। डॉक्टर बीआर आंबेडकर के प्रबुद्ध मार्गदर्शन में प्रवाहित, इन मूलभूत जीवन-मूल्यों और सिद्धांतों में रची-बसी संविधान की भावधारा ने, सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए सामाजिक न्याय के मार्ग पर हमें अडिग बनाए रखा है।’
कर्पूरी ठाकुर का भी किया जिक्र
राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे गणतंत्र की मूल भावना से एकजुट होकर 140 करोड़ से अधिक भारतवासी एक कुटुंब के रूप में रहते हैं। दुनिया के सबसे बड़े इस कुटुंब के लिए, सह-अस्तित्व की भावना, भूगोल द्वारा थोपा गया बोझ नहीं है, बल्कि सामूहिक उल्लास का सहज स्रोत है, जो हमारे गणतंत्र दिवस के उत्सव में अभिव्यक्त होता है। मैं यह उल्लेख करना चाहूंगी कि सामाजिक न्याय के लिए अनवरत युद्धरत रहे, कर्पूरी ठाकुर जी की जन्म शताब्दी का उत्सव कल ही संपन्न हुआ है। कर्पूरी जी पिछड़े वर्गों के सबसे महान पक्षकारों में से एक थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन उनके कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था। उनका जीवन एक संदेश था। अपने योगदान से सार्वजनिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए, मैं कर्पूरी जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।’

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