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त्वरित टिप्पणी उत्तराखंड विधानसभा भर्ती: जनता का हो गया खेला, न लांठी टूटेगी और सांप भी मर जाएगा

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जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : उत्तराखंड विधानसभा में विधानसभा अध्यक्षों के विशेष अधिकार के तहत की गई बंपर भर्तियों पर जनता के आक्रोश को देखते हुएकी गई जांच के तहत 2016 से 2021 तक कीसभी भर्तियां निरस्त कर दी गई हैं। साथ ही उपनल से आए कार्मिकोंकी भर्ती भी निरस्त कर दी गई है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूडी भूषण ने जांच कमेटी कीरिपोर्ट पर यह नियुक्ति रद्दकीहैं। लेकिन, क्या सचमुच यह नियुक्तियां रद्दहो पाएंगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा केवल दो अध्यक्षों द्वाराकी गई नियुक्ति को ही रद्द किया गया है। जबकि, उत्तराखंड विधानसभा में राज्य गठन 2000 से अब तक हर अध्यक्ष द्वारा अपने विशेष अधिकार के तहत बिना प्रक्रिया के सीधी भर्तियां कर रखी हैं। ऐसे में केवल 2016 के बाद की भर्तियों कोरद्द करने पर इस दौरान हटाए गए कार्मिकों के लिए न्यायालय का दरवाजा खुला रखा गया है। जानकारों का कहना है कि जब राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत, यशपाल आर्य, हरवंश कपूरद्वारा 258 भर्तियां की गई हैं। तो उनके विशेष अधिकार कोकिसी तरह से चुनौती नहीं दी गई है। इस लिहाज से हटाए गए कार्मिकों के पास ठोस तर्क यह है कि 2012 से पहले के विधानसभा अध्यक्षों के विशेष अधिकारों को चुनौती नहीं दी गई तो उसके बाद गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल के विशेष अधिकारों कोही क्यों निरस्त किया गया है। हालांकि, विधानसभा में प्रकाश पंत, यशपाल आर्य और हरवंश कपूर के द्वाराकी गई नियुक्तियों को तदर्थ न मानते हुए नियमित मानकर नहीं हटाया गया है। किन्तु, नियुक्ति तो उनकी भी अध्यक्षों द्वारा विशेष अधिकार के तहत बिना चयन प्रक्रिया के भर्तीहुई है। ऐसे में हटाए गए कार्मिकोंऔर अध्यक्षों के पास सटीक तर्क है कि जब पिछले अध्यक्षों की नियुक्ति कोरेगुलर/कंफर्म कर दिया गया तो उनकी नियुक्ति को कैसे निरस्त किया जा सकता है।
यदि विधानसभा से हटाए गए कार्मिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं तो निश्चित रूप से बात पहले के नियुक्त कार्मिकों तक भी पहुंचेगीऔर उन्हीं की भांति हटाए गए कार्मिकरेगुलर/कंफर्म होने की मांगकरेंगे। राजनीतिक सूत्रों में चर्चा यह है कि विधानसभा अध्यक्ष व सरकार ने विधानसभा में विशेषाधिकार के तहत हुई बिना चयन प्रक्रिया के तहत हुई नियुक्तियों से जनता में फैले आक्रोशको दबाने के लिए इस तरह का निर्णय लिया है। इससे लगता है कि जनता के साथ खेलाहो गया है जिसके तहत कार्मिक न्यायालय से अपनी बहाली का आदेश भी ले आएंगेऔर विधानसभा अध्यक्ष जनता में यह संदेश देने में सफल भी रहेंगीकी उन्होंने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है। इसे कहते हैं। लांठी भी बच गई औरसांप भी मर गया।

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