मणिपुर हिंसा मामले में महिला वकील की राहत बढ़ी; बिलकिस केस में दोषियों की सजा पर सात को सुनवाई
नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर पुलिस द्वारा एक तथ्य-खोज मिशन के सदस्यों के कथित बयानों पर दर्ज की गई एफआईआर के संबंध में एक महिला वकील को दी गई गिरफ्तारी से सुरक्षा की अवधि को चार सप्ताह के लिए बढ़ा दिया।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने महिला वकील दीक्षा द्विवेदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे से आगे की राहत के लिए सक्षम क्षेत्राधिकार वाली अदालत से संपर्क करने को कहा। मामले का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि द्विवेदी मणिपुर की एक अदालत के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश हो सकती हैं और शिकायत की स्थिति में वह फिर से शीर्ष अदालत का रुख कर सकती हैं।
मणिपुर सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि अगर इलाहाबाद की एक वकील “हिंसा भड़काने” के लिए राज्य का दौरा कर सकती है, तो वह शारीरिक रूप से भी वहां की अदालत में पेश हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह एक वकील का मामला है, जो यहां भाषण देने के बाद मणिपुर चली गईं और अब वह अदालत के सामने वहां नहीं आना चाहतीं।
शीर्ष अदालत ने पहले 11 जुलाई को वकील को दंडात्मक कार्रवाई से बचाया था और बाद में टीम के सदस्यों की कथित टिप्पणियों पर मणिपुर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के संबंध में राहत को 17 जुलाई तक बढ़ा दिया था। द्विवेदी ने टिप्पणी की थी कि राज्य में जातीय हिंसा “राज्य द्वारा प्रायोजित” थी। .
सीपीआई नेता और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की महासचिव एनी राजा सहित तथ्य-खोज समिति के सदस्यों के खिलाफ आठ जुलाई को एफआईआर दर्ज की गई थी। जिन दंडात्मक धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी उनमें देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित धारा भी शामिल थी।
इससे पहले पीठ ने कहा था, 14 जुलाई, 2023 की शाम पांच बजे तक इंफाल पुलिस स्टेशन में दर्ज आठ जुलाई, 2023 की एफआईआर के अनुसरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा। द्विवेदी महिला वकीलों के संघ, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की तीन सदस्यीय तथ्य-खोज टीम का हिस्सा थीं।
10 जुलाई को शीर्ष अदालत ने राज्य में हिंसा पर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि यह राज्य में तनाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मंच नहीं है। साथ ही अदालत ने संघर्षरत जातीय समूहों से अदालती कार्यवाही के दौरान संयम बरतने को कहा था।
बिलकिस बानो मामला: दोषियों को सजा में छूट के खिलाफ याचिकाओं पर न्यायालय सात अगस्त को करेगा अंतिम सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में सभी 11 दोषियों को पिछले साल दी गई सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करने के लिए सात अगस्त की तारीख तय की। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि दलीलें पूरी हो चुकी हैं और सभी दोषियों को समाचार पत्र प्रकाशनों के माध्यम से या सीधे नोटिस दिए गए हैं।
पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि मामले में दलीलें पूरी हो चुकी हैं और सभी उत्तरदाताओं को सभी मामलों में समाचार पत्रों के प्रकाशनों के माध्यम से या सीधे तौर पर नोटिस दिए गए हैं। हम मामले को सात अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हैं। सभी पक्षों को संक्षिप्त लिखित दलील, सारांश और तारीखों की सूची दाखिल करनी होगी।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने नौ मई को उन दोषियों के खिलाफ गुजराती और अंग्रेजी सहित स्थानीय समाचार पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने का निर्देश दिया था, जिन्हें नोटिस नहीं दिया जा सका, जिसमें वह व्यक्ति भी शामिल था, जिसके घर पर स्थानीय पुलिस ने ताला लगा हुआ पाया था और उसका फोन भी बंद था। सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने छूट दे दी थी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। इसके बाद बानो ने दोषियों को दी गई सजा में छूट को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की है।
सजा में छूट के खिलाफ माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर की हैं। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों को दी गई सजा में छूट और रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है। बता दें कि गोधरा ट्रेन अग्निकांड की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान बानो से सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। बानो तब 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थी। दंगों में उसकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के सात सदस्यों को मार दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को असम सरकार और अन्य से जवाब मांगा। उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के मई 2021 में शासन की बागडोर संभालने के बाद से हुई सिलसिलेवार पुलिस मुठभेड़ों पर एक जनहित याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने वकील आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर द्वारा दायर अपील पर राज्य सरकार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य को नोटिस जारी किए।
गौहाटी उच्च न्यायालय ने 27 जनवरी को जनहित याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि किसी अलग जांच की आवश्यकता नहीं है क्योंकि राज्य सरकार पहले से ही प्रत्येक मामले में अलग से जांच कर रही है। मामले में एक सरकारी हलफनामे का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि मई 2021 और अगस्त 2022 के बीच 171 घटनाओं में 56 लोग मारे गए, जिनमें से चार व्यक्ति हिरासत में मारे गए। इसके अलावा 145 अन्य घायल हुए।