सभी धर्मों और महिला-पुरुष के लिए समान हो भरण-पोषण, गुजारा भत्ता कानून, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

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नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान आधारों वाली ऐसी व्यवस्था बनाए जाने का अनुरोध किया गया है जो श्श्लैंगिंक और धार्मिक रूप से तटस्थ हो और संविधान, अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप हो।
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह याचिका दायर की है। इस याचिका में केंद्रीय गृह और कानून मंत्रालयों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वे भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के आधारों में मौजूदा विसंगतियों को दूर करने के लिए उचित कदम उठाएं और इन्हें धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी नागरिकों के लिए समान बनाएं।
वकील अश्विनी कुमार दुबे द्वारा दायर कराई गई इस याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के ऐसे समान आधार मुहैया कराने में नाकाम रही है, जो लैंगिक व धार्मिक रूप से तटस्थ हों। इसमें कहा गया है कि भरण-पोषण और गुजारा भत्ता आजीविका का एकमात्र स्रोत होता है, इसलिए धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्टेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता एवं गरिमा के अधिकार पर सीधा हमला है।
याचिका में कहा गया है, हिंदू, बौद्घ, सिख एवं जैन समुदाय के लोगों पर हिंदू विवाह कानून 1955 और हिंदू दत्तक और भरण पोषण कानून 1956 लागू होता है। मुसलमानों के मामले वैध विवाह और विवाहपूर्व समझौते की स्थिति के अनुसार निपटाए जाते हैं और उन पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है। ईसाई भारतीय तलाक कानून 1869 और पारसी लोग पारसी विवाह एवं तलाक कानून 1936 के अधीन आते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी कानून लैंगिक रूप से तटस्थ नहीं है।
याचिका में भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के भेदभावपूर्ण आधारों को संविधान के अनुच्टेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन घोषित करने का अनुरोध किया गया है। इसमें विधि आयोग को निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है कि वह घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों की समीक्षा करे और भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के समान आधारों पर तीन महीने में रिपोर्ट तैयार करे।श्श्

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