बिग ब्रेकिंग

उकसाने का अपराध साबित करने के लिए मनोदशा जरूर दिखनी चाहिए : सुको

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उकसावे के अपराध में दोष निर्धारित करने के लिये किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा श्अनिवार्य रूप से दिखनीश् चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में अपनी पत्नी को खुदकुशी के लिये उकसाने के मामले में आरोपी पति की दोषसिद्घि को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायालय ने कहा कि श्आपराधिक मनरूस्थितिश् (मंशा) के तत्वों के परोक्ष रूप से मौजूद होने की बात नहीं मानी जा सकती और उनका दिखना तथा सुस्पष्ट होना जरूरी है। न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मार्च 2010 के आदेश को निरस्त करते हुए यह कहा। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (खुदकुशी के लिये उकसाना) के तहत पति को दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा था।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्तिाषिकेश रय भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि सभी अपराधों में आपराधिक मनरूस्थिति को साबित करना होता है। भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा 107 के तहत उकसावे के अपराध को साबित करने के लिये किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा जरूर दिखनी चाहिए, ताकि दोष निर्धारित हा सके।
न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मनरूस्थिति को साबित करने के लिये यह स्थापित करने या दिखाने के लिये कोई साक्ष्य होना चाहिए कि व्यक्ति कुछ गलत मंशा रखे हुए था और उस मनोदशा में उसने अपनी पत्नी को खुदकुशी के लिये उकसाया।
कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा आरोपी को मामले में दी गई चार साल की कैद की सजा को बरकरार रखा था। आरोपी की पत्नी के पिता के बयान के आधार पर 1997 में बरनाला में इस संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और अभियोजन ने आरोप लगाया था कि पर्याप्त दहेज नहीं दिये जाने को लेकर विवाहिता को परेशान किया जाता था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!