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सुप्रीम कोर्ट: ड्राइवर को 35 दिन हिरासत में रखने से नाराज, कहा- गरीब और अमीर की स्वतंत्रता एकसमान

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नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गरीब की स्वतंत्रता, अमीर या संसाधनों से संपन्न लोगों की स्वतंत्रता से कमतर नहीं है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह टिप्पणी बिहार में एक ट्रक ड्राइवर जितेंद्र कुमार को 35 दिनों तक अवैध तरीके से पुलिस कस्टडी में रखने के मामले में पांच लाख रुपये मुआवजा देने के पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर की है। बिहार सरकार को मुआवजे की रकम को लेकर आपत्ति थी।
सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने पीठ से कहा कि हमने एक जिम्मेदार राज्य की तरह काम किया है। संबंधित थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। अनुशासनात्मक कार्यवाही भी चल रही है।
इस पर पीठ ने वकील से कहा कि राज्य को इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल ही नहीं करनी चाहिए थी। आप इसलिए सुप्रीम कोर्ट आए हैं क्योंकि आपके हिसाब से एक ट्रक चालक को पांच लाख मुवावजा बहुत अधिक है।
पीठ ने यह भी कहा कि स्वतंत्रता के नुकसान होने पर ऐसा नहीं है कि अमीर लोगों को मुआवजा अधिक मिलना ठीक है लेकिन गरीब को अधिक मिलना ठीक नहीं है। गरीब की स्वतंत्रता, अमीर या रसूखदार लोगों की स्वतंत्रता से कम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का ट्रक चालक को पांच लाख का मुआवजा देने का आदेश सही है।
पीठ ने वकील से कहा कि क्या राज्य सरकार यह कहना चाह रही है कि पुलिस ने उसे छोड़ दिया था, लेकिन वह अपनी मर्जी से थाने में था और अपनी स्वतंत्रता का मजा ले रहा था। आप समझते हैं कि अदालत आपकी इस तर्क पर विश्वास करें।
पीठ ने यह भी कहा कि आपके डीआईजी ने इस बारे में क्या कहा है। हाईकोर्ट के आदेश में डीआईडी की उस रिपोर्ट को रिकर्ड पर लिया गया है जिसमें कहा गया था कि तय समय के भीतर एफआईआर दर्ज नहीं हुई। घायल व्यक्ति का बयान दर्ज नहीं किया गया। न तो वाहन का निरीक्षण किया गया और बिना कारण के वाहन और चालक को अवैध तरीके से हिरासत में ले लिया गया।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा लगता है कि बिहार में पूरी तरह से श्पुलिस राजश् है। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। पिछले साल दिसंबर में हाईकोर्ट ने ट्रक चालक जितेंद्र कुमार को अवैध हिरासत में रखे जाने को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत नागरिकों को मिले अधिकार का उल्लंघन करार दिया था और राज्य सरकार को छह हफ्ते के भीतर चालक को पांच लाख रुपए मुआवजा देने के लिए कहा था। जितेंद्र को परसा थाना के अंतर्गत कथित तौर पर एक दुर्घटना के मामले में अवैध हिरासत में रखा गया था।

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