दिल्ली विधानसभा में प्रदूषण पर कैग रिपोर्ट पेश, निगरानी और निरीक्षण प्रणाली में मिली कई खामियां

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नईदिल्ली, दिल्ली विधानसभा में आज वायु प्रदूषण को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पेश की गई। इसमें वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों द्वारा तैयार आंकड़ों में संभावित अशुद्धियां, प्रदूषक स्रोतों पर वास्तविक समय की जानकारी का अभाव और सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी समेत कई कमियां गिनाई गई हैं।रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों की संख्या मानकों के अनुसार नहीं थी, जिससे वायु गुणवत्ता सूचकांक डेटा विश्वसनीय नहीं था।रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में बसों की कमी है। 9,000 जरूरी बसों के मुकाबले केवल 6,750 ही उपलब्ध हैं।
इसके अलावा बस प्रणाली में संचालन की अक्षमताएं जैसे बसों का ऑफ-रोड रहना, मार्गों की कम कवरेज और मार्गों को तर्कहीन बनाने से नुकसान की बात भी कही गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 के बाद से जनसंख्या में 17 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है, लेकिन ग्रामीण-सेवा वाहनों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि उचित वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए आवश्यक प्रदूषक सांद्रता डेटा उपलब्ध नहीं था और हवा में सीसे के स्तर को भी नहीं मापा गया।
वाहनों से होने वाले उत्सर्जन का कोई आकलन नहीं किया गया, जिससे नीतियां बनाने में कठिनाई हुई।
24 निगरानी स्टेशनों में से 10 में बेंजीन स्तर सीमा से अधिक पाया गया।
पेट्रोल पंपों से होने वाले उत्सर्जन की प्रभावी निगरानी भी नहीं की गई।
रिपोर्ट में वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र (पीयूसी) जारी करने से जुड़ी अनियमितताएं भी सामने आई हैं।
10 अगस्त, 2015 से 31 अगस्त, 2020 तक जांचे गए 22.14 लाख डीजल वाहनों में से 24 प्रतिशत में जांच मूल्य दर्ज नहीं किए गए।
इसके अलावा 4,007 डीजल वाहनों में जांच मूल्य सीमा से ज्यादा मिलने पर भी फिट घोषित किया गया।
इसी तरह 1.08 लाख पेट्रोल/ सीएनजी/एलपीजी वाहनों को सीमा से अधिक उत्सर्जन करने के बावजूद पीयूसी जारी किए गए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक केंद्र पर 76,865 मामलों में वाहन की जांच और पीयूसी जारी करने में केवल एक मिनट लगे, जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।
60 प्रतिशत फिटनेस प्रमाण पत्र बिना प्रदूषण परीक्षण किए ही जारी कर दिए गए।
स्वचालित वाहन निरीक्षण इकाई में रोजाना औसतन 24 वाहनों का परीक्षण किया गया, जबकि इसकी क्षमता 167 वाहनों की है।
बसों की अनिवार्य रूप से महीने में 2 बार प्रदूषण जांच नहीं की गई।

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