शैल शिल्पी विकास संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताया रोष
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : शैल शिल्पी विकास संगठन के अध्यक्ष विकास आर्य ने सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा 1 अगस्त 2024 को दिए गए उस फैसले पर रोष व्यक्त किया है। जिसमें पीठ ने राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को मिलने वाले संवैधानिक आरक्षण का उप वर्गीकरण कर इन जातियों को आरक्षण देने संबधी निर्देश दिया था। कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसी भी दृष्टि से स्वागत योग्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस दुर्भाग्यपूर्ण फैसले में तर्क दिया है कि, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों की सभी उपजातियां को आरक्षण का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है एवं कुछ जातियां ही आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ रही है।
शनिवार को यहां जारी एक बयान में विकास आर्य ने कहा कि एक ओर जहां देश के संविधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने आजादी के बाद देश का संविधान निर्माण कर हजारों वर्षों से असमानता, शोषण का दंश झेल रहे करोड़ों वंचित लोगों को संवैधानिक रूप से आरक्षण के दायरे में लाकर उन्हें एक किया, लेकिन 1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया कि वह अपने-अपने राज्यों में अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को मिलने वाले संवैधानिक आरक्षण का उप वर्गीकरण कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समाज को अलग-अलग धड़ों में विभाजित कर आरक्षण दे सकती हैं। कहा कि आरक्षण पर दिए गए इस निराधार फैसले से पूर्व सुप्रीम कोर्ट को राज्यों को निर्देशित करना चाहिए था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के जितने भी पद विभिन्न सरकारी विभागों में वर्षों से खाली पड़े हैं उन्हें भरा जाए। अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार आरक्षण का उपवर्गीकरण होता है, तो इन वर्गों का विभाजित होकर टूटना तय है।