हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और चीन में ठनी
नई दिल्ली, एजेंसी।अमेरिका की एक रिपोर्ट ने बाइडन प्रशासन की नींद उड़ा दी है। कंबोडिया में एक नए सैन्घ्य अड्डे के निर्माण की खबर से बाइडन प्रशासन बचौन हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन कंबोडिया में एक नौसैनिक अड्डा बना रहा है। द वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, चीन के सैनिकों की उपस्थिति कंबोडिया के रीम नेवल बेस के उत्तर में थाईलैंड की खाड़ी पर रहेगी। यह माना जा रहा है कि चीन ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर अपनी स्थित को मजबूत बनाने के लिए यह चौकी बनाई है। इस क्षेत्र में चीन का यह दूसरा सैन्य अड्डा है। इसके पहले चीन ने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में नौसैनिक अड्डा बनाया था। चीन के इस कदम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की सैन्य शक्ति का विस्तार होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र पर चीन की नजर क्घ्यों है। इससे भारत, अमेरिका समेत अन्घ्य देश क्यों चिंतित हैं। इन सब मामलों में विशेषज्ञों की क्घ्या राय है।
अंतरराष्ट्रीय एवं रक्षा मामलों के जानकार प्रो अभिषेक सिंह का कहना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विश्व भू-क्षेत्र का 44 फीसद हिस्सा है। विश्व जनसंख्या का 65 फीसद हिस्सा इसमें निवास करता है। विश्व जीडीपी का 62 फीसद भाग है और यह विश्व के 46 फीसद व्यापारिक माल के व्यापार में योगदान देता है। दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर के रास्ते लगभग 3़5 ट्रिलियन डालर का व्यापार होता है। सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं और भारत के व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, कोरिया और जापान का समग्र व्यापार दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र से होता है। भारत के व्यापार का लगभग 50 फीसद हिस्सा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रित है। हिंद महासागर में भारत का 90 फीसद कारोबार होता है और इसका 90 फीसद ऊर्जा स्रोत है।
प्रो अभिषेक ने कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत का दृष्टिकोण स्घ्पष्घ्ट है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2019 में मालदीव की संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र हमारा साझा क्षेत्र हैं। उन्घ्होंने कहा था कि यह क्षेत्र जहां विश्व की 50 फीसद जनसंख्या रहती है और यहां धर्म, संस्कृति, भाषा, इतिहास और राजनीतिक व आर्थिक प्रणालियों की व्यापक विविधता है। भारत का तर्क रहा है कि समुद्र और वायु क्षेत्र के साझा इस्तेमाल के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सबकी समान पहुंच होनी चाहिए। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की स्वतंत्रता होगी।किंतु यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई अनसुलझे विवाद हैं। चीन की नजर इस क्षेत्र पर टिकी है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते अतिक्रमण से इलाके में महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता बढ़ी है। यह चिंता की बात है।
उन्होंने कहा कि चीन की हिंद प्रशांत क्षेत्र में दिलचस्पी भारत के लिए भी खतरे की घंटी है। प्रो अभिषेक का कहना है कि खासकर भारत के सामरिक लिहाज से यह चिंता का विषय है। कंबोडिया में बना चीन का यह नया सैन्य ठिकाना भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से महज 12,00 किलोमीटर की दूरी पर है। चीन की नौसेना या युद्घ के जहाज यहां से आसानी से बंगाल की खाड़ी में पहुंच सकते हैं। चीन समुद्री रास्ते से म्यांमार में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में जुटा है। इस सैन्य ठिकाने की मदद से चीन भारत और अमेरिका दोनों की सेनाओं की हरकतों पर खुफिया तौर पर निगरानी कर सकेगा। चीन लागातार पूरे विश्व में अपने सैन्य ठिकानों को विस्तारित करने की कोशिश में लगा हुआ है। चीन इसके लिए आर्थिक रूप से कमजोर देशों को फंडिंग करने के बाद उनके यहां घुसपैठ करता है फिर धीरे-धीरे वहां अपने सैन्य ठिकानों के निर्माण में लग जाता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार है। वर्ष 2018-19 के दौरान 87़95 बिलियन डालर के कुल व्यापार के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। यही कारण है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी रणनीति में खुला और मुक्त हिंद-प्रशांत का आह्वान किया है। इसमें हिंद-प्रशांत निकाय बनाने की मांग की गई है, जहां संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता की रक्षा हो सके। चीन इस क्षेत्र को एशिया प्रशांत क्षेत्र मानता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विचार को मान्यता नहीं प्रदान करता है। दक्षिण चीन सागर में अपने हितों को आक्रमक रूप से साधते हुए चीन हिंद महासागर क्षेत्र को अपनी बेल्ट और रोड पहल में एक महत्वपूर्ण संघटक के रूप में देखता है। रूस हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विचार को नहीं मानता है और वह इस क्षेत्र को एशिया-प्रशांत क्षेत्र कहता है।