मासिक धर्म शर्म का नहीं, सृजन का विषय: स्वामी चिदानंद महाराज

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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म का उद्देश्य है जागरूकता, करुणा और समरसता है। यदि मासिक धर्म के विषय पर चुप्पी समाज को पीड़ा दे रही है, तो धर्म की जिम्मेदारी है कि वह समाज को इस पीड़ा से मुक्त करे। उन्होंने सभी धर्मगुरुओं, शिक्षकों, अभिभावकों और युवाओं से मासिक धर्म को लेकर जागरूकता फैलाने का आह्वान किया। बुधवार को परमार्थ निकेतन में चल रही मासिक श्रीराम कथा में पहुंचे बालिकाओं के ग्रुप और महिलाओं को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस पर जागरूक किया गया। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि मासिक धर्म शर्म का नहीं, सृजन का विषय है। यह नारी के भीतर छुपी प्रकृति की रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है। जहां श्रीराम कथा के माध्यम से हम मर्यादा, सेवा, प्रेम और समर्पण का पाठ पढ़ते हैं, वहीं हमें समाज में व्याप्त मासिक धर्म से जुड़ी चुप्पी, संकोच और भ्रम को तोड़ने का भी संकल्प लेना होगा। उन्होंने कहा कि जैसे भगवान श्रीराम ने समाज को मर्यादा का मार्ग दिखाया, वैसे ही हमें भी अब मासिक धर्म जैसे आवश्यक विषयों पर खुलकर, गरिमा के साथ चर्चा करनी होगी। हमारे देश के कई हिस्सों में मासिक धर्म को लेकर सामाजिक वर्जनाएं हैं। जब नवरात्रि में हम कन्याओं के चरण धोते हैं, और उसी कन्या की महावारी को हम अशुद्ध कैसे कह सकते हैं। मासिक धर्म कोई बीमारी नहीं, यह नारी की जैविक प्रक्रिया है, जो संतान सृजन के लिए आवश्यक है। इसे छुपाना नहीं, समझाना होगा, इसे अपवित्र नहीं, पवित्र दृष्टि से देखना होगा। फोटो कैप्शन 29 आरएसके 02- बुधवार को परमार्थ निकेतन में बालिकाओं व महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूक करते स्वामी चिदानंद सरस्वती।

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