मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट एक बार फिर चर्चा में
देहरादून। कोरोना महामारी के दौर में निजी अस्पतालों की मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट एक बार फिर चर्चा में है। अफसोस यह कि प्रदेश में वर्ष 2015 में पारित होने के बाद भी इस एक्ट को निजी अस्पतालों में लागू नहीं किया जा सका है। इसका अस्तित्व कागजों पर ही है। लागू करने से पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) इसमें संशोधन चाहता है। इस मसले पर दोनों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन हल नहीं निकल पाया। इस एक्ट का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें कई सख्त प्रविधान रखे गए हैं। निजी अस्पताल यदि मौजूदा एक्ट को अपनाते हैं तो कई मामलों में उनकी सीधी जिम्मेदारी तय हो जाएगी। निजी अस्पतालों, डाक्टरों व नर्सिंग होम की मनमानी पर अंकुश लगेगा, जबकि आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और ज्यादा सुलभ व सस्ती हो जाएंगी। कोरोना काल में इसकी सख्त जरूरत महसूस हो रही है।
राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने की बात चलती रही है। इसके लिए सरकारों ने पर्यटन से जुड़ी अवस्थापना सुविधाओं को विकसित करने का निर्णय लिया, कई योजनाएं भी बनीं। एक निर्णय यह लिया गया कि सरकार यहां निवेशकों को जमीन मुहैया कराएगी, ताकि वे पर्यटन के क्षेत्र में निवेश करें। इसके लिए पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में लैंड बैंक बनाने की योजना बनी। इसके लिए कैबिनेट के जरिये उत्तराखंड पर्यटन भूमि एकत्रीकरण एवं क्रियान्वयन नियमावली को मंजूरी दी गई। नियमावली में यह प्रविधान किया गया कि लैंड बैंक में निजी व सरकारी, दोनों ही तरह की भूमि को शामिल किया जाएगा। निजी भूमि की खरीद के लिए बाकायदा कोष भी बना। इसमें कुछ पैसा टोकन मनी के रूप में रखा गया। कहा गया कि इससे नए टोल, रिजार्ट, रोपवे आदि बनाने में मदद मिलेगी। चार वर्ष पूर्व गठित यह कोष जस का तस है।