राजनीतिक लाभ के लिए घोषणाओं पर कोर्ट ने किए तीखे सवाल, कहा- व्यापक विमर्श और वित्तीय आकलन के बाद बननी चाहिए योजनाएं
नई दिल्ली, एजेंसी। पिछले दिनों में मुफ्त उपहारों की योजनाओं को लेकर हर स्तर पर सवाल खड़े होते रहे हैं। केवल राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी घोषणाओं को लेकर कोर्ट ने तीखे सवाल किए हैं। वहीं यह बहस भी छिड़ गई है कि योजनाएं और कानून बनाने से पहले व्यापक जन बहस और उसके वित्तीय परिणाम पर भी चर्चा जरूरी है। अदालत ने पिछले दिनों ऐसी कई योजनाओं पर गंभीर आपत्ति जताई है जो या तो जल्दबाजी में बने हैं या फिर वित्तीय कारणों से जमीन पर नहीं उतर पा रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने हाल में शिक्षा के अधिकार मामले पर एक सुनवाई के दौरान कड़ी आपत्ति जताई थी और कहा था कि अगर हर स्तर पर स्कूलों में शिक्षकों का नियुक्ति नहीं की जा रही है तो कानून ही क्यों लाया गया। पांच पाच हजार वेतन के शिक्षक रखकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे दी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि कानून बनाने से पहले वित्तीय आकलन जरूर किया जाना चाहिए और यह व्यापक विमर्श के बाद ही होना चाहिए। इसी तरह बिहार के शराब बंदी कानून के मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के ज्यादातर न्यायाधीशों के इस कानून में आरोपितों की जमानत सुनने में व्यस्त होने पर कानून को लेकर सवाल उठाया था। जिसके बाद बिहार सरकार कानून में संशोधन लाई है।
किसानों के देशव्यापी विरोध को देखते हुए पिछले दिनों सरकार ने नये षि कानून वापस ले लिए थे। इससे पहले इसी तरह के विरोध को देखते हुए भूमि अधिग्रहण संसोधन कानून वापस ले लिया गया था। षि कानून, सीएए, तीन तलाक कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनका संसद से लेकर सड़क तक बड़े स्तर पर विरोध हुआ हालांकि षि कानून के अलावा बाकी दोनों कानून कायम हैं। ऐसा नही है कि वापस लिए गए कानून ठीक नहीं थे षि कानून देश की षि नीति तय करने वाले और किसानों को बिचौलियों के चुंगल से मुक्त करने वाले थे।
पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा भी कहते हैं कि कई कानूनों को लाने के पीटे का उद्देश्य अच्टे हो सकते हैं लेकिन अगर निर्विवाद रूप से क्रियान्वयन न हो तो सवाल खडे होते हैं। सीएए और षि कानून के बारे में भी ऐसा ही हुआ। ध्यान रहे कि कुछ कानूनों को लेकर राजनीतिक रूप से भी माहौल गर्म रहा है। यही हाल मे राज्य सरकारों की कुछ घोषणाओं को लेकर भी रहा है।
खासकर मुफ्त बिजली अर्थशास्घ्त्रियों से लेकर बिजली कंपनियों तक को नागवार गुजर रहा है। हाल में एसबीआइ की इकोरैप ने तो राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों को नाम लेते हुए कहा था कि यहां राज्य की जितनी आय है कि उससे 20-35 फीसद तक अधिक खर्च हो रहे हैं जिसके कारण इनकी वित्तीय स्थिति खराब है।