उत्तराखंड

फ्यूंलानारायण के कपाट हुए बंद

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चमोली। समुद्रतल से लगभग दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित फ्यूंलानारायण मंदिर के कपाट सोमवार को नवमी तिथि के दिन विधि-विधान के साथ दोपहर एक बजे बंद कर दिए गए हैं। बता दें कि उच्च हिमालय में भगवान नारायण का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसके कपाट साल में मात्र डेढ़ माह के लिए खुलते हैं। कपाट बंद होने से पहले ठाकुर जाति के महिला व पुरूष पुजारियों द्वारा नारायण की फुलवारी में खिले वन फूलों से श्रंगार किया गया। जिसके बाद भगवान का वर्ष का अंतिम भोग आरती की गई। इस वर्ष 16 जुलाई सावन सक्रांति को फ्यूंलानारायण मंदिर के कपाट के कपाट खुले थे। कपाट बंद होने के बाद भगवान फ्यूंलानारायण की चल-विग्रह को भर्की गांव में पहाडी वाद्य यंत्रों के साथ लाया जाता है जिसके बाद भर्की में ही भगवान की शीतकालीन पूजायें प्रतिदिन संपादित की जाती हैं। सोमवार तडके सुबह फ्यूंलानारायण मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई , मंदिर के पुजारी योगम्बर सिंह ने भगवान फ्यूंलानारायण की हजारों वर्ष पुरानी पाषाण मूर्ती पर मक्खन का लेप लगाने के बाद नियमानुसार वैदिक पूजायें संपादित की जिसके बाद नारायण का फूलों से श्रृंगार किया और दोपहर को मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। इस मौके पर सैकडों की तादात में हक-हकूकधारी मौजूद रहे। कपाट बंद होने के अवसर पर ग्रामीण हर्षवर्धन फरस्वांण, उजागर फरस्वांण, लक्ष्मण नेगी, प्रधान भरकी मंजू देवी, सरपंच सुरेंद्र सिंह, रघुबीर सिंह नेगी, देवेंद्र चौहान समेत उर्गम घाटी के भर्की, भेंटा, अरोसी, ग्वाणा, पिलखी आदि गांवों के सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
कुंवारी कन्या व बुजुर्ग महिलायें करती है यहां पूजा
उर्गम घाटी से लगभग 6 किमी की पहाडी चढाई के बाद स्थित है। हजारों वर्ष पुराना फ्यूंलानारायण का मंदिर जहां पर नारायण की चर्तुभुज पदमासन में विराजमान हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि कपाट खुलन से बंद होने तक नारायण का श्रंगार कुंवारी कन्या या बुजुर्ग महिलाओं के द्वारा किया जाता है।

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